SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 532
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ... श्वस III. i. 141 देखें - श्यादव्यय III. 1. 141 - ... श्वसः - IV. it. 104 देखें ऐषमोहा IV. 1. 104 श्वसः - IV. iil. 15 (कालविशेषवाची) श्वस् प्रातिपदिक से (विकल्प से उन् प्रत्यय होता है तथा उस प्रत्यय को तुट् का आगम भी होता है। - ..श्वस... VII. ii. 5 देखें हम्यन्तक्षण VII. II. 5 श्वसः - V. iv. 80 श्वस् शब्द से उत्तर (वसीयस् तथा श्रेयस्-शब्दान्त प्रातिपदिकों से समासान्त अच् प्रत्यय होता है)। - प् प्रत्याहारसूत्र IX भगवान पाणिनि द्वारा अपने नवम प्रत्याहारसूत्र में इत्स ज्ञार्थ पठित वर्ण । धू... - VIII. iv. 40 देखें टुना VIII. iv. 40 - घ्... - VIII. iv. 40 देखें टु VIII. Iv. 40 - घ - प्रत्याहारसूत्र XIII में आचार्य पाणिनि द्वारा अपने तेरहवें प्रत्याहार सूत्र पठित द्वितीय वर्ण । 514 पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का इकतालीसवां वर्ण । ....... - VII. 1. 5 देखें - हम्यन्तक्षणo VII. ii. 5 शिव... - VII. ii. 14 देखें वीदि VII. 1. 14 ष ... श्विभ्यः - III. 1. 58 देखें – - श्वीदितः श्वेतवह... - III. 1. 71 श्वादे: - VII. iii. 8 देखें श्वेतवहोक्यशस् III. 1. 71 श्वन् आदि वाले अङ्ग को (इञ् प्रत्यय परे रहते जो श्वेतवहोक्वशस्पुरोडाशः 111. 1. 71कुछ कहा है, वह नहीं होता) । श्वास्यलङ्कारेषु - IV. II. 95 (कुल, कुक्षि तथा ग्रीवा शब्दों से यथासङ्ख्य करके) श्वन् असि तथा अलङ्कार अभिधेय होने पर (जातादि अर्थों में ढक प्रत्यय होता है)। अश्वि तथा ईकार इत्सञ्ज्ञक धातुओं को (निष्ठा परे रहते इट् आगम नहीं होता) । श्वे - VI. i. 130 (लिट् तथा यङ् के परे रहते) दुओश्वि धातु को (विकल्प से सम्प्रसारण हो जाता है)। - घ... स्तम्भु० III. 1. 58 VII.ii. 14 (वैदिक प्रयोगविषय में) श्वेतवह, उक्यशस्, पुरोडाश् शब्द विन्प्रत्ययान्त निपातन किये जाते हैं। श्वेतवा: - VIII. ii. 67 श्वेतवाः शब्द दीर्घ किया हुआ सम्बुद्धि में निपातित है। - देखें ... घ... - V. iv. 106 देखें चुदषहान्तात् V. Iv. 106 ष - Viv. 115 (द्वि तथा त्रि शब्दों से उत्तर जो मूर्धन् शब्द, तदन्त प्रातिपदिक से समासान्त) व प्रत्यय होता है, (बहुवीहि समास में) । - 1 VIII. ii. 41 — पढो VIII. 1. 41 प. - I. 1. 6 (उपदेश में प्रत्यय के आदि में वर्तमान) पकार (इत्संज्ञक होता है)। पः - VI. 1. 62 (धातु के आदि में) षकार के स्थान में (उपदेश अवस्था में सकार आदेश होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy