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________________ श्रि... श्र... - VII. ii. 11 देखें - युक: VII. ii. 11 ...fa... VII. ii. 49 देखें- इवन्त०] VII. 1. 49 त्रिणी – III. iii. 24 (उपसर्गरहित) श्रि, णी तथा भू धातुओं से (कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। - श्रित... - II. 1. 23 देखें - श्रितातीतपतितगता० II. 1. 23 तिम् - VI. 1.35 (वेदविषय में) श्रितम् शब्द का निपातन किया जाता है । श्रितातीतपतितगतात्यस्तप्राप्तापन्नैः (द्वितीयान्त सुबन्त) श्रित, अतीत, पतित, गत, अत्यस्त, प्राप्त, आपन्न – इन (समर्थ सुबन्तों) के साथ (विकल्प से समास को प्राप्त होता है और वह समास तत्पुरुषसंज्ञक होता है) । श्री ... - VII. 1. 56 देखें - श्रीग्रामण्यो : VII. 1. 56 श्रीग्रामण्यो - VII. 1. 56 - .. श्रु... - I. iii. 57 देखें - ज्ञाश्रुस्मृदृशाम् I. iii. 57 II. 1. 23 श्री तथा ग्रामणी अङ्ग के (आम् को वेदविषय में नुट् का आगम होता है)। श्रु... - VI. iv. 102 देखें मुख० VI. Iv. 102 .... श्रुतयोः - VI. ii. 148 देखें- दत्तलुतयो: VIII. 148 बुक - 1. iii. 59 - 512 (प्रति, आङ् पूर्वक सन्नन्त) श्रु धातु से (आत्मनेपद नहीं होता है)। शुक्र - I. iv. 40 (प्रति एवं आ उपसर्ग से उत्तर धातु के प्रयोग में पूर्व का जो कर्ता, वह कारक सम्मदानसंज्ञक होता है)। श्रुवः - III. 1. 74 श्रु धातु से उत्तर (श्नु प्रत्यय होता है और 'श्रु' को - आदेश भी कर्तृवाची सार्वधातुक परे रहते )। " ... श्रुवः – III. ii. 108 देखें ... श्रुवः देखें - - - सदवस० III. ii. 108 III. iii. 25 ... श्रुवः - VII. ii. 13 देखें - कसम० VII. ii. 13 III. iii. 25 ... श्रुमदण: - V. iii. 118 देखें- अभिजि० Viii. 118 श्रुणुपकवृभ्यः - VI. Iv. 102 श्रु, श्रृणु, पृ, कृ तथा वृ से उत्तर (वेदविषय में हि को धि. आदेश होता है)। jare:- 111. ii. 173 शु तथा वदि धातुओं से (तच्छीलादि कर्ता हों तो वर्त मान काल में आरु प्रत्यय होता है ) । श्रेण्यादयः - 11.1.58 श्रेणि आदि (सुबन्त) शब्द (कृत आदि समानाधिकरण सुबन्त शब्दों के साथ विकल्प से समास को प्राप्त होते हैं और वह समास तत्पुरुषसंज्ञक होता है)। .. श्रेयसः - V. iv. 80 देखें - वसीय श्रेयस् V. Iv. 80 .....श्रेयसाम् VII. III. 1 देखें- देविकाशिंशपाo VII. III. 1 iii. - - .....श्रोत्रिय... - 11. 1. 64 देखें- पोटायुवतिस्तोक II. 1. 64 श्रोत्रिय - V. 84 (वेद को पढ़ता है' अर्थ में) श्रोत्रियन् शब्द का निपातन किया जाता है। VIII. ii. 91 ... औषड्डू... देखें बूहिप्रेष्य VIII. 1. 91 युकः - VII. ii. 11 त्रि तथा उगन्त धातुओं को (कित् प्रत्यय परे रहते इट् आगम नहीं होता) ।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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