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________________ विभाषा 485 ...विभ्यः विभाषा-VII. iii. 58 (अभ्यास से उत्तर जि अङ्गको) विकल्प से (कवर्गादेश होता है, सन् तथा लिट् परे रहते)। विभाषा-VII. iii. 90 (हलादि पित सार्वधातुक परे रहते 'ऊर्गुब आच्छादने . धातु को) विकल्प से (वृद्धि होती है)। विभाषा - VII. iii. 115 . (द्वितीया तथा तृतीया शब्द से उत्तर डित् प्रत्यय को) विकल्प से (स्याट् आगम होता है तथा द्वितीया, तृतीया शब्द को स्याट के योग में हस्व भी हो जाता है)। विभाषा-VII. iv. 44 . (ओहाक अंजको) विकल्प से वेदविषय में क्त्वा प्रत्यय परे रहते 'हि' आदेश होता है)। विभाषा-VII. iv.97 वेष्ट तथा चेष्ट अङग के अभ्यास को णि परे रहते) विकल्प से (अकारादेश होता है)। विभाषा-VIII.1.27 (विद्यमान है कोई पद पूर्व में जिससे, ऐसे प्रथमान्त पद से उत्तर षष्ठ्यन्त,चतुर्थ्यन्त तथा द्वितीयान्त युष्मद् अस्मद् शब्दों को) विकल्प से (वाम नौ आदि आदेश नहीं होते)। विभाषा - VIII. I. 41 (अहो शब्द से युक्त तिङन्त को पूजा-विषय से शेष - विषयों में) विकल्प करके (अनुदात्त नहीं होता)। विभाषा-VIII. I. 45 (किंम् शब्द का लोप होने पर क्रिया के प्रश्न में अनुपसर्ग तथा अप्रतिषिद्ध तिङन्त को) विकल्प करके (अनुदात्त नहीं होता)। विभाषा-VIII. 1.50 (अविद्यमानपूर्व आहो, उताहो शब्दों से युक्त तिडन्त को अनन्तर से शेष विषय में) विकल्प करके (अनुदात्त नहीं होता)। विभाषा-VIII. 1.63 - (चादियों के लोप होने पर प्रथम तिडन्त को) विकल्प करके (अनुदात्त नहीं होता)। विभाषा-VIII. ii. 21 (अजादि प्रत्यय परे रहते गृ धातु के रेफ को) विकल्प करके (लत्व होता है)। विभाषा-VIII. ii.93 (पछे गये प्रश्न के प्रत्युत्तर वाक्य में वर्तमान हि शब्द को) विकल्प करके (प्लत उदात्त होता है)। विभाषा-VIII. ii. 79 (डण से परे इट से उत्तर षीध्वम,लुङ तथा लिट् के धकार को) विकल्प से (मूर्धन्य आदेश होता है)। विभाषा-VIII. iv.9 (ओषधिवाची तथा वनस्पतिवाची पूर्वपद में स्थित निमित्त से उत्तर वन शब्द के नकार को) विकल्प करके (णकार आदेश होता है)। विभाषा-VIII. iv. 18 (उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर,जो उपदेश में ककार तथा खकार आदि वाला नहीं है एवं षकारान्त भी नहीं है, ऐसे शेष धातु के परे रहते नि के नकार को) विकल्प से (णकारादेश होता है)। विभाषा-VIII. iv. 29 (ण्यन्त धातु से विहित जो कत प्रत्यय.उसमें स्थित जो अच से उत्तर नकार, उसको उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर विकल्प से (णकार आदेश होता है)। विभाषितम्- VII. iii. 25 (जङ्गल, धेनु, वलज अन्तवाले अङ्ग के पूर्वपद के अचों में आदि अच को वृद्धि होती है तथा इन अङ्गों का उत्तर) विकल्प से (वृद्धिवाला होता है; जित्, णित् तथा कित् तद्धित परे रहते)। विभाषितम् - VII. 1. 53 (गत्यर्थक धातुओं के लोडन्त से युक्त उपसर्गरहित एवं उत्तमपुरुषवर्जित जो लोडन्त तिङन्त; उसे) विकल्प करके (अनुदात्त नहीं होता, यदि कारक सभी अन्य न हों तो)। विभाषितम् - VIII. 1.74 (विशेषवाची समानाधिकरण आमन्त्रित परे रहते सामान्यवचन आमन्त्रित को) विकल्प से (अविद्यमानवत होता ...विभ्यः -I.lil. 22 देखें -समवप्रविश्य: I. iii. 22 ...विभ्यः -I. iii. 30 देखें-निसमुपविभ्यः I. iii. 30
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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