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________________ ला स लि-VIII. iv. 59 (तवर्ग के स्थान में) लकार परे रहते (परसवर्ण आदेश होता है)। लिड...-I. I. 11 देखें-लिङ्सिचौ I. ii. 11 लिङ्-III. 1.9 (दो घडी से ऊपर के भविष्यत्काल को कहना हो तो लोडर्थलक्षण में वर्तमान धातु से) लिङ्ग प्रत्यय (भी. विकल्प से होता है, साथ में लट् भी)। लिङ्-III. iii. 134 (आशंसावाची शब्द उपपद हो तो धातु से) लिङ् प्रत्यय होता है। लिङ्-III. iii. 143 (गर्दा गम्यमान हो तो कथम् शब्द उपपद रहते विकल्प से) लिङ् प्रत्यय होता है (तथा चकार से लट् प्रत्यय भी होता है)। लिङ्...-III. 1. 144 देखें-लिड्लटो III. iii. 144 लिङ्-III. iii. 147 (अनवक्तृप्ति = असम्भावना तथा अमर्ष = सहन न करना अभिधेय हो तो जातु तथा यद् उपपद रहते धातु से) लिङ्ग प्रत्यय होता है। लिङ्-III. iii. 152 (उत, अपि समानार्थक उपपद हों तो धातु से) लिङ् प्रत्यय होता है। लिङ् - III. iii. 156 (हेत और हेतुमत् अर्थ में वर्तमान धातु से) लिङ प्रत्यय (विकल्प से होता है)। लिङ्... - III. iii. 157 देखें-लिङ्लोटौ III. iii. 157 लिङ्-III. iii. 159 (समानकर्तृक इच्छार्थक धातुओं के उपपद रहते धातु से) लिङ् प्रत्यय भी होता है। लिङ्-III. iii. 161 (आज्ञा देना, निमन्त्रण, आमन्त्रण,सत्कारपूर्वक व्यवहार करना, सम्प्रश्न, प्रार्थना अर्थों में धातु से) लिङ् प्रत्यय होता है। लिङ्-III. iii. 164 (प्रैष = प्रेरणा देना, अतिसर्ग = कामचारपूर्वक आज्ञा देना तथा प्राप्तकाल = समय आ जाना अर्थ गम्यमान हों तो मुहर्त्तभर से ऊपर के काल के कहने में धात से) लिङ् प्रत्यय होता है (तथा चकार से यथाप्राप्त कृत्यसंज्ञक एवं लोट् प्रत्यय होते हैं)। लिङ्-III. iii. 168 (काल, समय, वेला और यत् शब्द भी उपपद हो तो धातु से) लिङ् प्रत्यय होता है। .. लिङ्-III. ifi. 172 (शक्यार्थ गम्यमान हो तो धातु से) लिङ् प्रत्यय होता है,(तथा चकार से कृत्यसंज्ञक प्रत्यय भी होते हैं)। .. लिइ... -III. iii. 173 देखें-लिङ्लोटौ III. iii. 173 लिङ्-III. iv. 116 (आशीर्वाद अर्थ में जो) लिङ (वह आर्धधातुकसंज्ञक होता है)। लिइ... -VII. ii. 42 देखें-लिङ्सिचो: VII. ii. 42. लिङः -III. iv. 102 लिङ के आदेशों को (सीयुट् आगम होता है)। लिङः - VII. ii. 79 (सार्वधातुक में) लिङ् लकार के (अनन्त्य सकार का लोप होता है)। लिडथे - III. iv.7 (वेदविषय में) लिङ् के अर्थ में (विकल्प से लेट् प्रत्यय होता है और वह परे होता है)। लिङि-II. iv. 42 (आर्धधातुक) लिङ् के परे रहते (हन् को वध आदेश होता है)। लिङि-III.i. 86 __ आशीर्वादार्थक लिङ् परे रहते (धातु से अङ् प्रत्यय होता है, छन्दविषय में)। लिङि-VI. iv.67 कित.डित) लिङ् (आर्धधातुक) परे रहते (घु, मा, स्था, गा.पा, हा तथा सा- इन अङ्गों को एकारादेश हो जाता
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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