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________________ 1447 ...लासेव मारकक्कुद तथा कुक्कुल अर्थ में ढक ...लभ्य.. - V.1.92 लप... -III. ii. 154 देखें- परिजव्यलभ्य V.1.92 देखें-लवपत III. ii. 154 ललाट... - IV. iv. 46 ...लप -III. 1.70 देखें- ललाटकुक्कुट्यो IV. iv. 46 देखें-प्राशालाश III. 1.70 ललाटकुक्कुट्यो - IV. iv. 46 लषः -III. ii. 144 (द्वितीयासमर्थ) ललाट तथा कुक्कुटी प्रातिपदिकों से (अपपूर्वक तथा चकार से विपूर्वक) लष् धातु से (भी (संज्ञा गम्यमान होने पर 'देखता है' - अर्थ में ढक् घिनुण प्रत्यय होता है)। प्रत्यय होता है)। . लषपतपदस्थाभूतपहनकमगमशृभ्यः -III. ii. 154 ...ललाटात् -IV. 1.65 लष, पत, पद, स्था, भू. वृष, हन, कम, गम तथा शूदेखें-कर्णललाटात् IV. iii. 65 इन धातुओं से (तच्छीलादि कर्ता हो.तो वर्तमान काल में ...ललाटयोः - III. II. 36 उकञ् प्रत्यय होता है)। देखें-असूर्यललाटयोः III. 1. 36 ...लस... -III. ii. 143 ...ललामम् - IV. iv.40 देखें - कवलस III. ii. 143 देखें -प्रतिकण्ठार्थललामम् IV. iv. 40 लसार्वधातुकम् – VI. i. 180 ...लवण.. -III. I. 21 (तासि प्रत्यय, अनुदात्तेत् धातु, डित् धातु तथा उपदेश देखें-मुण्डमिश्र III. 1. 21 में जो अवर्णान्त- इनसे उत्तर) लकार के स्थान में जो ...लवण.. -1.1. 120 . सार्वधातुक प्रत्यय,वे (अनुदात्त होते हैं; हुङ् तथा इङ् धातु देखें-अचतुरमङ्गल.V.i. 120 - को छोड़कर)। ...लवणयोः -VI. 1.4 ...लसेभ्यः -V.i. 120 देखें-गाधलवणयो: VI. 1.4 देखें-अचतुरमडल. .i. 120 लवणात् - IV. iv. 24 लस्य - III. iv.77 (ततीयासमर्थ) लवण प्रातिपदिक से 'मिला हुआ' अर्थ (यहाँ से आगे जो कार्य कहेंगे,वे) लकार के स्थान में में उत्पन्न प्रत्यय का लुक होता है)। (हुआ करेंगे)। लवणात् - IV. iv. 52 लाक्षा... - IV.it (प्रथमासमर्थ) लवण प्रातिपदिक से (इसका बेचना' । अर्थ में ठंञ् प्रत्यय होता है)। देखें - लाक्षारोचनात् IV. ii. 2 लाक्षारोचनात् - IV. ii. 2 ...लवणानाम् -VII. I. 51 (ततीयासमर्थ रागविशेषवाची) लाक्षा तथा रोचना देखें - अश्वक्षीर० VII.1.51 प्रातिपदिकों से (रंगा गया' अर्थ में ठक् प्रत्यय होता है)। लवने-VI.i. 135. काटने के विषय में (कृ विलेपे धातु के परे रहते उप लाक्षा = लाख,लाल रंग। उपसर्ग से उत्तर ककार से पूर्व सुट् का आगम होता है, रोचना = उज्ज्वल आकाश, सुन्दर स्त्री, एक प्रकार संहिता के विषय में)। का पीला रंग। लशकु-I. iii.8 ...लाभ... - V.i. 46 (उपदेश में प्रत्यय के आदि में वर्तमान) लकार,शकार । देखें- वृद्ध्यायलाभ० V.1.46 और कवर्ग (इत्सज्जक होते है. तद्धित को छोड़कर)। ...लासेषु - VI. iii. 49 ....लय... -III. II. 150 देखें - लेखयदण्लासेषु VI. iii. 49 देखें-जुचक्रम्प III. II. 150
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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