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________________ युष्याक... युष्माक... - IV. iii.2 यूय... - VII. ii. 3 देखें - युष्माकास्माको IV. iii. 2 देखें - यूयवयौ VII. ii. 93 युष्पाकास्माको - IV. i. 2 यूयवयौ-VII. 1. 93 (उस खञ् तथा अण् प्रत्यय के परे रहते युष्मद् अस्मद् (जस विभक्ति परे रहते युष्मद् अस्मद् अङ्गके मपर्यन्त के स्थान में यथासङ्ख्य) युष्माक, अस्माक आदेश होते भाग को क्रमशः) यूय, वय आदेश होते हैं। यूषन् -VI.i. 61 . युस् - V. it. 123 (ऊर्णा प्रातिपदिक से मत्वर्थ' में) युस् प्रत्यय होता है। (वेदविषय में यूष शब्द के स्थान में) यूषन् आदेश हो जाता है,(शस प्रकार वाले प्रत्ययों के परे रहते)। ...युस्... -v.. 138 ये - VI. 1.60 देखें-बभयुस० V.ii. 138 युस् - V. ii. 140 यकारादि (तद्धित) के परे रहते (भी शिरस् को शीर्षन् (अहम् तथा शुभम् प्रातिपदिकों से मत्वर्थ में) यस आदेश हो जाता है)। प्रत्यय होता है। ये - VI. iii. 86 यू-I. iv.3 (तीर्थ शब्द उत्तरपद हो तो) य प्रत्यय परे रहते (समान ईकारान्त तथा ऊकारान्त (स्त्रीलिङ्गको कहने वाले शब्द शब्द को स आदेश हो जाता है)। नदीसझक होते हैं)। ये-VI. iv. 43 . ...यूति... - III. ii. 97 यकारादि (कित, ङित्) प्रत्ययों के परे रहते (जन, सन, • देखें - ऊतियूति. III. iii. 97 खन अङ्गों को विकल्प से आकारादेश हो जाता है)। यून-IV.i.77 ये - VI. iv. 109 यवन शब्द से (स्त्रीलिङ्ग में ति प्रत्यय होता है और वह यकारादि प्रत्यय परे रहते (भी कृ अङ्ग से उत्तर उकार तद्धित होता है)। प्रत्यय का नित्य ही लोप होता है)। यूना -I. 1.65 ये-VI. iv. 168 युवा प्रत्ययान्त शब्द के साथ (वृद्ध = गोत्रप्रत्ययान्त (भाव तथा कर्म से भिन्न अर्थ में वर्तमान) यकारादि शब्द शेष रह जाता है,यदि वृद्ध-युव-प्रत्ययनिमित्तक ही (तद्धित) के परे रहते भी (अन्नन्त भसजक अङ्गको प्रकृभेद हो तो)। तिभाव हो जाता है)। .. यूनि-II. iv. 58 ये - VIII. ii. 88 (ण्यन्त गोत्रप्रत्ययान्त, तद्धितवाची गोत्रप्रत्ययान्त) ऋषि __'ये' शब्द को (यज्ञ की क्रिया में प्लुत उदात्त होता है)। वाची गोत्रप्रत्ययान्त तथा जित्प्रत्ययान्त युवा अपत्य में विहित (अण और इबू का लुक होता है)। येन-I.i.71 यूनि - IV. 1. 90 जिस विशेषण से (विधि की जाये.वह विशेषण अन्त (प्राग्दीव्यतीय अजादि प्रत्यय की विवक्षा में) युवा अर्थ में है जिसके, उस विशेषणान्त समुदाय का ग्राहक होता में उत्पन्न प्रत्यय का (लुक हो जाता है)। है और अपने स्वरूप का भी)। यूनि - IV. 1. 94 येन -I. iv. 28 युवापत्य की विवक्षा होने पर (गोत्र से ही युवापत्य में . (व्यवधान के कारण) जिससे छिपना चाहता हो, उस प्रत्यय हो, अनन्तरापत्य या प्रथम प्रकृति से नहीं, स्त्री कारक की अपादान संज्ञा होती है)। अपत्य को छोड़कर)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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