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________________ ... मामक.... ... मामक... - IV. 1. 30 देखें - केवलमामक० IV. 1. 30 ... माया... - V. ii. 121 देखें - अस्मायामेवाo VII. 121 मायायाम् - IV. iv. 124 असुर की (षष्ठीसमर्थ असुर शब्द से वेद - विषय में अपनी माया अभिधेय होने पर (अण् प्रत्यय होता है)। ... मार्देया: - VI. ii. 107 देखें - हास्तिनफलक० VI. ii. 107 मालादीनाम् - VI. ii. 88 (प्रस्थ शब्द उत्तरपद रहते पूर्वपद) मालादि शब्दों को (भी आद्युदात्त होता है)। .. मालानाम् - VI. III. 64 देखें - इष्टकेषीकाo VI. iii. 64 ... माष... - V. 1. 7 देखें - खलयवमाक V. 1.7 माष... - V. 1. 34 देखें - पणपादमापo V. 1. 34 .... मा.... - V. ii. 4 देखें तिलमायो० VII. 4 - 'मास... - IV. Iv. 128 देखें - मासतन्वो IV. Iv. 128 .. मास... - V. 1. 57 देखें - शतादिमासo V.ii. 57 मासतन्वोः IV. iv. 128 मास और तनू प्रत्ययार्थ विशेषण हों तो (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से मतुप् के अर्थ में यत् प्रत्यय होता है)। मासात् - V. 1. 80 (द्वितीयासमर्थ कालवाची) मास प्रातिपदिक से (अवस्था गम्यमान होने पर 'हो चुका' अर्थ में यत् और खज् प्रत्यय होते हैं)। -- 417 .....IV. lv. 67 देखें - ब्राणामांसौदनात् IV. 1. 67 मित् - I. 1. 46 मकार इत्संज्ञा वाला आगम (अचों में अन्तिम अच् से परे होता है)। मित... - III. 1. 34 देखें ...मित... - VI. II. 170 देखें - अकृतमितo VI. 1. 170 मिताम् VI. Iv. 92 - ... मित्र ... - VII. III. 2 मासू - VI. 1.61 देखें केकयमित्रयु VII. III. 2 (वेद-विषय में मास शब्द के स्थान में) मास् आदेश हो मित्राजिनयोः - VI. 1. 164 जाता है, (शस् प्रकार वाले प्रत्ययों के परे रहते)। मितनखे III. II. 34 मित्सव्लक अङ्ग की (उपधा को ह्रस्व होता है, णि परे रहते) । मितनखे III. ii. 34 से मित और नख (कर्म) उपपद हों तो (भी पच् धातु खश् प्रत्यय होता है)। मित्र... - V. iv. 150 देखें - मित्रामित्रयो Iv. 1.50 ... मित्र... - VI. II. 116 देखें - जरमरo VI. ii. 116 मित्र... - VI. ii. 165 देखें - मित्राजिनयो: VI. 1. 165 - मिट (सहा विषय में उत्तरपद) मित्र तथा अजिन शब्दों को (बहुव्रीहि समास में अन्तोदास होता है)। मित्रामित्रयोः - V. iv. 150 (सुहृद् तथा दुई शब्द कृतसमासान्त निपातन किये जाते हैं; यथासङ्ख्य करके) मित्र तथा अमित्र वाच्य हों तो । - मित्रे - VI. iii. 129 मित्र शब्द उत्तरपद रहते (भी ऋषि अभिधेय होने पर विश्व शब्द को दीर्घ हो जाता है)। मिथ्योपपदात् III. 71 मिथ्या शब्द उपपद वाले (ण्यन्त कृञ् धातु) से (अभ्यास अर्थ में आत्मनेपद होता है)। ...मिट - 111. II. 161 देखें - भजभासमिदः III. 1. 161
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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