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________________ मातृपितृभ्याम् ...माभ्याम् मातृपितृभ्याम् - VIII. iii. 84 माद = नशा, हर्ष, अंहकार। मात तथा पित शब्द से उत्तर (स्वस शब्द के सकार को ...माध्वी... -VI. iv. 175 समास में मूर्धन्य आदेश होता है)। देखें-ऋव्यवास्त्व्य VI. iv. 175 मातृष्वसुः - IV. 1. 134 मान्... -III.i.6 पितृष्वस प्रातिपदिक को जो कुछ कहा है वह) मातृष्वस देखें - मान्बधदान्शान्भ्यः III. 1.6 शब्द को (भी होता है)। मान... -III. I. 129 ...मात्रच्..-IV.i. 15 देखें - मानहविर्निवास III. 1. 129 देखें-टिड्राण V.i. 15 मान... -V.ii. 51 ...मात्रच: -V.ii.37 देखें - मानपश्वगयो: V. iii. 51. देखें-द्वयसदन v. ii. 37 . मानपश्वङ्गयो: - V. iii. 51 मात्रा-I.ii.70 माप तथा पशु का अङ्ग (रूपी षष्ठ और अष्टम) प्राति-' मातृ शब्द के साथ (पितृ शब्द विकल्प से शेष रह जाता पदिकों से (यथासङ्ख्य करके कन् प्रत्यय तथा ज और है, मातृ शब्द हट जाता है)। अन प्रत्यय का विकल्प से लुक होता है तथा यथाप्राप्त मात्रा... -VI. ii. 14 अन् और अञ् भी होते है)। देखें- मात्रोपज्ञोपOVI. ii. 14 मानहविर्निवाससामिधेनीषु -III. 1. 129 मात्राथें-II.i.9 (पाय्य, सान्नाय्य, निकाय्य, धाय्या-ये शब्द यथामात्रा = बिन्द अथवा अल्प अर्थ में (वर्तमान प्रति संख्य करके) मान = तोलने का बाट,हविः, निवास तथा शब्द के साथ समर्थ सबन्त अव्ययीभाव समास को प्राप्त सामिधेनी = एक ऋचा अभिधेय होने पर (निपातन किये होता है)। जाते हैं)। मात्रोपज्ञोपक्रमच्छाये - VI. ii. 14 ...मानिनो: -VI. iii. 35 (नपुंसकवाची तत्पुरुष समास में) मात्रा,उपज्ञा,उपक्रम देखें-क्यड्मानिनो: VI. iii. 35 तथा छाया शब्द उत्तरपद हों तो (पूर्वपद को प्रकृतिस्वर ...मानुषीभ्यः - IV. 1. 103 होता है)। देखें-नदीमानुषीभ्यः IV.i. 103 उपज्ञा =अन्तःकरण में अपने आप उपजा ज्ञान, माने-IV. iii. 159 अविष्कार। (षष्ठीसमर्थ द्र प्रातिपदिक से) मानरूपी विकार अभिमाथोत्तरपद... - IV. iv. 37 धेय हो (तो वय प्रत्यय होता है)। देखें- माथोत्तरपदपदव्य IV. iv. 37 माथोत्तरपदपदव्यनुपदम् - IV. iv. 37 मान्तस्य - VII. ii. 34 (द्वितीयासमर्थ) माथ शब्द उत्तरपद वाले प्रातिपदिक से (उपदेश में उदात्त तथा) मकारान्त धात् को (चिण तथा तथा पदवी, अनुपद प्रातिपदिकों से (दौड़ता है' अर्थ में । जित् कृत् परे रहते जो कहा गया है, वह नहीं होता; ठक् प्रत्यय होता है)। आपूर्वक चम् धातु को छोड़कर)। . माथ = मन्थन, हत्या, मार्ग। मान्बधदान्शान्भ्यः - III. 1.6 माद...-VI. iii.95 मान,बध,दान् और शान् धातुओं से (सन् प्रत्यय होता देखें-मादस्थयो: VI. iii.95 है तथा अभ्यास के विकार को दीर्घ आदेश होता है)। मादस्थयो:-VI. iii. 95 ....माभ्याम् - V.ii. 137 माद तथा स्थ उत्तरपद रहते (वेद-विषय में सह शब्द देखें-मन्माभ्याम् V. 1. 137 को सघ आदेश होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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