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________________ 412 मन्माभ्याम् में। मनो: -IV.i. 161 मन्त्रे -VI. 1. 146 मनु शब्द से (जाति को कहना हो तो अञ् तथा यत् (हस्व से उत्तर चन्द्र शब्द उत्तरपद में हो तो सुट् का प्रत्यय होते हैं तथा) मनु शब्द को (षक का आगम भी आगम होता है), मन्त्रविषय में। हो जाता है)। मन्त्रे-VI.i. 204 ...मनोज्ञादिभ्यः - V.i. 132 (जष्ट तथा अर्पित शब्दों को) मन्त्रविषय में (नित्य देखें-द्वन्दूमनोज्ञादिभ्यः V.i. 132 ही आधुदात्त होता है)। मन्वितन्व्याख्यानशयनासनस्थानयाजकादिक्रीता: - मन्त्रे - VI. iii. 130 VI. ii. 151 (सोम, अश्व, इन्द्रिय,विश्वदेव्य-इन शब्दों को (कारक से उत्तर) मन् प्रत्ययान्त, क्तिन् प्रत्ययान्त, मतप प्रत्यय परे रहने पर दीर्घ हो जाता है) मन्त्रविषय व्याख्यान, शयन, आसन, स्थान, याजकादि तथा क्रीत शब्द उत्तरपद को (अन्तोदात्त होता है)। मन्त्रे-VI. iv. 53 ...मन्तात् -VI. iv. 137 मन्त्र-विषय में (इडादि तृच् परे रहते 'जनिता' यह देख-वमन्तात् VI. iv. 137 निपातन होता है)। ...मन्त्र... -III. ii. 22 मन्त्रेषु - VI. iv. 141 , देखें- शब्दश्लोक III. ii. 22 मन्त्र-विषय में (आङ् = टा परे रहते आत्मन् शब्द . ...मन्त्र..-III. 1.89 के आदि का लोप होता है)। देखें-सुकर्मपाप III. ii.89 मन्थ... -V.i. 109 मन्त्रः - IV. iv. 165 देखें - मन्थदण्डयो: V.i. 109 (उपधान) मन्त्र (समानाधिकरण प्रथमासमर्थ मतबन्त प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में यत् प्रत्यय होता है. __...मन्थ.. - VI. ii. 122 देखें-कंसमन्य. VI. ii. 122 , यदि षष्ठयर्थ में निर्दिष्ट ईटें ही हों तथा मतप का लुक भी हो जाता है, वेद-विषय में)। मन्य... -VI. iii.59 देखें-मन्यौदन० VI. iii. 59 मन्त्रकरणे -I. iii. 25 मन्य... -VII. ii. 18 मन्त्रकरण = स्तुति अर्थ में प्रयुज्यमान (उपपूर्वक स्था देखें-मन्थमनस्० VII. ii. 18. । धातु से आत्मनेपद होता है)। ...मन्थिषु -VI..ii. 142 मन्त्रे-II. iv.80 देखें - अपृथिवीरुद्र० VI. ii. 142 मन्त्र-विषयक प्रयोग में (घस, हर, णश, वृ, दह, मन्यौदनसक्तबिन्दवज्रभारहारवीवधगाहेषु - VI. iii. आदन्त, वृच्, क, गम् और जन् धातुओं से विहित 59 'च्लि' का लुक हो जाता है)। मन्थ, ओदन, सक्तु, बिन्दु, वज्र, भार, हार, वीवध, गाह मन्त्रे-III. 1.71 - इन शब्दों के उत्तरपद रहते (भी उदक शब्द को उद वैदिक प्रयोग-विषय में (श्वेतवह, उक्थशस्, पुरो आदेश विकल्प करके होता है)। डाश्-ये शब्द ण्विन्प्रत्ययान्त निपातन किये जाते वीवध = बोझा ढोने के लिये भंगी, भोझा। मन्त्रे-III. 11.96 गाह = डुबकी लगाना, गहराई, आभ्यन्तर प्रवेश। मन्त्रविषय में (वृष, इष, पच, मन, विद, भू, वी,रा मन्माभ्याम् -V.ii. 137 धातुओं से स्त्रीलिङ्ग भाव में क्तिन् प्रत्यय होता है मन् अन्तवाले तथा म शब्दान्त प्रातिपदिकों (से मत्वर्थ और वह उदात्त होता है)। में इनि प्रत्यय होता है, सज्जाविषय में)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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