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________________ मध्वादिभ्यः 411 मध्वादिभ्यः - IV.ii. 85 मधु आदि प्रातिपदिकों से (भी चातुरर्थिक मतुप प्रत्यय होता है)। मन्... -V.ii. 137 देखें-मन्माभ्याम् V. ii. 137 मन्... - VI. ii. 151 देखें- मन्वितन्० VI. ii. 151 ...मन्... -VI. iv.97 देखें - इस्मन् VI. iv.97 ...मन... -III. iii.96 देखें-वृषेष III. iii.96 ...मन... - III. iii.99 देखें-समजनिषद III. iii. 99 ...मन... -VII. iii.78 • देखें-पिबजिन VII. iii. 78 मनः -III. ii.,82 मन् धातु से (सुबन्त उपपद रहते ‘णिनि' प्रत्यय होता मन: - IV.i. 11 मन अन्त वाले प्रातिपदिकों से (स्त्रीलिङ्ग में ङीप प्रत्यय नहीं होता)। ...मनस्... -v.iv. 51. - देखें - अर्मनस्० V. iv. 51 ...मनस्... -VII. ii. 18 देखें-मन्थमनस्o VII. ii. 18 मनसः -VI. iii.4 मनस् शब्द से उत्तर (सज्ञाविषय में तृतीया विभक्ति का उत्तरपद परे रहते अलुक् होता है)। ...मनसी-I. iv.65 देखें - कणेमनसी I. iv. 65 ...मनसी -1. iv.74 देखें-उरसिमनसी I. iv.74 मनसी -Vi. ii. 117 (सु से उत्तर मन् अन्तवाले) तथा अस् अन्तवाले उत्तरपद शब्दों को (बहुव्रीहि समास में आधुदात्त होता है, लोमन् तथा उषस् शब्दों को छोड़कर)। मनिन्... - III. ii.74 देखें-मनिन्क्वनिप्छ III. I. 74 मनिन्क्वनिव्वनिप: -III. ii.74 (आकारान्त धातुओं से सुबन्त उपपद रहते वेदविषय में) मनिन्, क्वनिप, वनिप् (तथा विच) प्रत्यय होते हैं। ...मनुष्य... - IV.ii. 38 देखें - गोत्रोक्षोष्ट्रो IV.ii. 38 मनुष्य.. - IV. ii. 133 देखें - मनुष्यतत्स्थयो: IV. ii. 133 ...मनुष्य.. - V. iv. 56 देखें -देवमनुष्य० v. iv.56 मनुष्यजाते: - IV.i. 65 (इकारान्त) मनुष्यजातिवाची (अनुपसर्जन) शब्द से (स्त्रीलिङ्ग में ङीष् प्रत्यय होता है)। . मनुष्यतत्स्थयो: - IV.ii. 133 मनुष्य तथा मनुष्य में स्थित कोई कर्मादि अभिधेय हो (तो कच्छादि प्रातिपदिकों से वज प्रत्यय होता है)। मनुष्यनाम्न: - V. iii. 78 (बहुत अच् वाले) मनुष्य नामधेय प्रातिपदिक से (अनुकम्पा से युक्त नीति गम्यमान होने पर विकल्प से ठच प्रत्यय होता है)। मनुष्ये - IV. i. 128 (अरण्य प्रातिपदिक से) मनुष्य अभिधेय हो तो (शैषिक वुञ् प्रत्यय होता है)। मनुष्ये - V. iii. 98 (सज्ञाविषय में विहित कन् प्रत्यय का) मनुष्य अभिधेय होने पर (लुप् हो जाता है)। ...मनुष्येभ्यः - IV. iii. 81 देखें - हेतुमनुष्येभ्य: IV. iii. 81 मनोः - IV. i. 38 ___ मनु शब्द से (स्त्रीलिङ्ग में विकल्प से ङीप् प्रत्यय,औकार अन्तादेश एवं ऐकार अन्तादेश भी हो जाता है और वह ऐकार उदात्त भी होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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