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________________ मन्यकर्मणि मन्यकर्मणि - II. iii. 17 मन् धातु के (प्राणिवर्जित) कर्म में (विकल्प से चतुर्थी विभक्ति होती है, अनादर गम्यमान होने पर) । मन्यतेः - I. iv. 105 (परिहास गम्यमान हो रहा हो तो भी मन्य है उपपद जिसका, ऐसी धातु से युष्मद् उपपद रहते समान अभिधेय होने पर युष्मद् शब्द का प्रयोग हो या न हो, तो भी मध्यम पुरुष हो जाता है तथा उस) मन् धातु से (उत्तम पुरुष हो जाता है और उस उत्तम पुरुष को एकत्व भी हो जाता है) । ... मन्ये - VIII. 1. 46 देखें – एहिमन्ये VIII. 1. 46 मन्योपपदे - I. iv. 105 (परिहास गम्यमान हो रहा हो तो भी) मन्य है उपपद जिसका, ऐसी धातु से (युष्मद् उपपद रहते समान अभिधेय होने पर युष्मद् शब्द प्रयोग हो या न हो, तो भी मध्यम पुरुष हो जाता है तथा उस मन् धातु से उत्तम पुरुष हो जाता है और उत्तम पुरुष को एकत्व भी हो जाता है)। म - IV. iv. 20 (तृतीयासमर्थ वित्र प्रत्ययान्त प्रातिपदिक से निर्वृत्त अर्थ में नित्य ही) मं प्रत्यय होता है । मपरे - VIII. III. 26 मकारपरक (हकार) के परे रहते (पदान्त मकार को विकल्प से मकारादेश होता है। 413 मपर्यन्तस्य - VII. 1. 91 (यहाँ से आगे 'प्रत्ययोत्तरपदयो' VII. ii. 98 तक सब आदेश) मकारपर्यन्त को कहेंगे । पूर्व - VI. Iv. 170 : ( अपत्यार्थक अणु के परे रहते वम्र्म्मन् शब्द के अन् को छोड़कर) जो मकार पूर्ववाला अन्, उसको ( प्रकृतिभाव नहीं होता)। ....ममकी - IV. 1. 3 देखें - तवकममकौ IV. iii. 3 ...ममौ - VII. 1. 96 देखें - तवममौ VII. 11. 96 मय: - VIII. iii. 33 मय् प्रत्याहार से उत्तर (उञ् को अच् परे रहते विकल्प सेवकारादेश होता है)। मयट् - IV. 1. 82 (पञ्चमीसमर्थ हेतु तथा मनुष्यवाची प्रातिपदिकों से आगत अर्थ में) मयट् प्रत्यय (भी) होता है। मयट् - IV. iii. 140 (षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिकों से भक्ष्य, आच्छादन से वर्जित विकार तथा अवयव अर्थों में लौकिक प्रयोगविषय में विकल्प से) मयट् प्रत्यय होता है । मयट् - V. ii. 47 (प्रथमासमर्थ सङ्ख्यावाची प्रातिपदिकों से 'इस भाग का यह मूल्य' अर्थ में) मयट् प्रत्यय होता है । मयट् - Viv. 21 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से 'प्रभूत' अर्थ में) मयट् प्रत्यय होता है। मयते - VI. in. 70 'मेङ् प्रणिदाने' अङ्ग को (विकल्प करके इकारादेश होता है, ल्यप् परे रहते) । मयूरव्यंसकादयः - II. 1. 71 मयूरव्यंसकादिगणपठित समुदायरूप शब्द (भी समानाधिकरण तत्पुरुषसंज्ञक निपातित है)। ये - IV. iv. 138 (सोम शब्द से) मयट् के अर्थ में (भी य प्रत्यय होता है)। ... मयौ VIII. 1. 22 देखें - तेमयौ VIII. 1. 22 - .... मर्या.... ... मर... - VI. ii: 116 देखें •जरमरo VI. ii. 116 - .... मरुत्वत्... - IV. ii. 31 देखें द्यावापृथिवीशना० IV. II. 31 - ... . मत्यैध्य - V. Iv. 56 देखें - देवमनुष्यo V. Iv. 56 मर्मृज्य - VII. Iv. 65 मर्मृज्य शब्द (वेद-विषय में) निपातन किया जाता है। ....मर्य... III.1.123 देखें निष्टवर्यदेवहूय III. 1. 123 -
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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