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________________ ...मथ... 410 मधु... - IV. 1. 106 देखें- मधुबध्वोः IV. 1. 106 मधुबध्वोः - IV. 1. 106 मधु तथा बभ्रु शब्दों से (यथासंख्य करके ब्राह्मण तथा कौशिक गोत्र वाच्य हों तो यञ् प्रत्यय होता है)। मघो: - IV. iv. 129 (प्रथमासमर्थ) मधु प्रातिपदिक से (मत्वर्थ में मास और तनु प्रत्ययार्थ विशेषण हों तो ब और यत् प्रत्यय होते है)। ...मथ.. -III. ii. 145 देखें- लपस III. ii. 145 ...मथाम् - III. ii. 27 देखें- वनसन III. ii. 27 ...मथि... - VII.i. 85 देखें- पथिमथिO VII.1.85 ...मद... - III. 1. 100 देखें- गदमद० III. 1. 100 ...मद... - VI.i. 186 देखें- भीहीभृ. VI.i. 186 मदः -III. iii.67 (उपसर्गरहित) मद् धातु से (कर्तभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में अप् प्रत्यय होता है)। ...मदाम् - VIII. 1. 57 देखें- ध्याख्यापृ० VIII. ii. 57 ...मद्र... -II. iii.73 देखें- आयुष्यमद्रभद्र II. iii. 73 मद्र.. -IV.ii. 130 देखें- मद्रवृज्योः IV. ii. 130 ...मद्र... -VI. ii.91 देखें- भूताधिक. VI. ii: 91 मद्रवृज्योः -IV. 1. 130 (देशविशेषवाची) मद्र तथा वृजि शब्दों से (शैषिक कन् प्रत्यय होता है)। मद्र = उस देश, उस देश का शासक, उस देश के वासी। वृजि = कतराना, परित्याग करना। मद्रात् -V.iv.67 मद्र प्रातिपदिक से (कब के योग में डाच् प्रत्यय होता है, मुण्डन वाच्य हो तो)। ...मद्रे-III. 1.44 देखें-क्षेमप्रिय III. 1.44 मद्रेश्य - IV. II. 107 (दिशापूर्वपद वाले) मद्रान्त प्रातिपदिक से (शैषिक अब् प्रत्यय होता है)। मधोः - IV. iv. 139 मधु प्रातिपदिक से (मयट के अर्थ में यत् प्रत्यय होता है.वेद-विषय में)। ...मध: - V.ii. 107 देखें- ऊपसुषिov.ii. 107 ...मध्यम.. -I.iv. 100 देखें- प्रथममध्यमोत्तमाः I. iv. 100 ...मध्यम... -II.1.57 देखें - पूर्वापरप्रथम II. 1. 57 मध्यमः -I. iv. 104 (युष्मद् शब्द के उपपद रहते समान अभिधेय होने पर युष्मद् शब्द का प्रयोग न हो या हो तो भी) मध्यम पुरुष होता है। मध्यात्-IV. 11.8 मध्य प्रातिपदिक से (शैषिक म प्रत्यय होता है)। मध्यात्-VI. iii. 10 मध्य शब्द से उत्तर (गुरु शब्द उत्तरपद रहते सप्तमी विभक्ति का अलुक् होता है)। मध्ये-I. iv.75 मध्ये (पदे तथा निवचने) शब्द (भी कब के योग में विकल्प से गति और निपात संज्ञक होते हैं)। मध्ये -II.1.17 (पार और) मध्य शब्द (षष्ठ्यन्त सुबन्त के साथ विकल्प से अव्ययीभाव समास को प्राप्त होते हैं तथा समास के सन्नियोग से इन शब्दों को) एकारान्तत्व भी निपातन से हो जाता है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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