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________________ ...भर... 398 ...भर... - VII. ii. 49 देखें-इवन्तर्ध० VII. I. 49 ...भरतेषु - II. iv. 66 देखें-प्राच्यभरतेषु II. iv. 66 ...भरद्वाज... -IV.i. 117 देखें-वत्सभरद्वाजा IV.i. 117 भरिप्रत् - VII. iv. 65 भरिप्रत् शब्द वेदविषय में निपातन किया जाता है। भर्गात् - IV.i. 111 भर्ग शब्द से (गोत्र में फञ् प्रत्यय होता है, त्रिगर्त देश में उत्पन्न अर्थ वाच्य हो तो)। ...भर्गादि.. - IV.I. 176 देखें - प्राच्यभर्गादि० IV.i. 176 ...भर्सनेषु-VIII.i. 8 देखें-असूयासम्मति VIII.1.8 ...भव... - IV.i.48 देखें-इन्द्रवरुणभव IV.i. 48 भवः - IV. iii. 53 (सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिक से) होने वाला' अर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होता है)। भवतः -IV.ii. 114 (वृद्धसंज्ञक) भवत् शब्द से (शैषिक ठक् और छस् प्रत्यय होते है)। ...भवतिभ्याम् -I. ii. 6 देखें-इन्धिभवतिभ्याम् I. 1.6 भवते: - VII. iv.73 भू(अङ्ग) के (अभ्यास को अकारादेश होता है. लिट पो रहते)। भवनात्-IV. 1.87 . 'धान्यानां भवने.v.i.1 तक जिन अर्थों में प्रत्यय कहे गये हैं, उन सब अर्थों में (स्त्री तथा पंस शब्दों से यथासङ्ख्य करके नञ् तथा स्नञ् प्रत्यय होते हैं)। भवने -v.ii.1 (षष्ठीसमर्थ धान्य विशेषवाची प्रातिपदिकों से) उत्पत्ति- स्थान' अभिधेय हो तो (खजु प्रत्यय होता है, यदि वह उत्पत्तिस्थान खेत हो तो)। भववत् - IV. ii. 33 (कालविशेषवाची प्रातिपदिकों से 'सास्य देवता' विषय में) भवाधिकार के समान प्रत्यय होते हैं। भववत् - V.i.95 (सप्तमीसमर्थ कालवाची प्रातिपदिकों से 'दिया जाता है' और 'कार्य' अर्थों में) भव अर्थ के समान ही प्रत्यय हो जाते हैं। भविष्यत्... - II. iii. 70 देखें- भविष्यदाधमर्ण्ययोः II. iii. 70 . भविष्यति - III. iii.3 भविष्यत् काल (के अर्थ) में (उणादिप्रत्ययान्त गमी . आदि पद साधु होते हैं)। भविष्यति - III. iii. 136 (अवर प्रविभाग अर्थात् इधर के भाग को लेकर मर्यादा कहनी हो तो) भविष्यत्काल में (धातु से अनद्यतनवत् प्रत्ययविधि (नहीं होती)। भविष्यदाधमर्ययो: – II. iii. 70 भविष्यत् काल और आधमर्ण्य = ऋणविशिष्टकर्ता (विहित अक और इन् प्रत्ययान्तों के योग में षष्ठी विभक्ति नहीं होती। भवे-IV. iv. 110 (सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिक से) भव = होने वाला अर्थ में (वेद-विषय में यत् प्रत्यय होता है)। भव्य.. - III. iv. 68 देखें- भव्यगेय III. iv.68 भव्यगेयप्रवचनीयोपस्थानीयजन्याप्लाव्यापात्या:-III. iv.68 भव्य,गेय,प्रवचनीय,उपस्थानीय,जन्य,आप्लाव्य और आपात्य शब्द (कर्ता में विकल्प से निपातन किये जाते भव्ये -v.ii. 104 (द शब्द से भी) पात्रत्व अभिधेय होने पर (द्रव्य पद यत् प्रत्ययान्त निपातन किया जाता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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