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________________ प्रेष्यनुकः 386 ..प्साति... प्रेष्यबुवः -II. iii. 61 (देवता सम्प्रदान है जिसका, उस क्रिया के वाचक) प्र पूर्वक इष धातु तथा बू धातु के (कर्म हवि के वाचक शब्द से षष्ठी विभक्ति होती है)। प्रैष... -III. iii. 163 देखें - प्रैषातिसर्गः III. iii. 163 प्रैषातिसर्गप्राप्तकालेषु - III. ii. 163 प्रेषण करना,कामचारपूर्वक आज्ञा देना,समय आ जाना -इन अर्थों में (धातु से कृत्य प्रत्यय होते हैं तथा लोट भी होता है)। ....प्रेषेषु - VIII. ii. 104 देखें – क्षियाशी:प्रेषेषु VIII. ii. 104 प्रोक्तम् - IV. iii. 101 (ततीयासमर्थ प्रातिपदिक से) प्रोक्त = प्रवचन किया हुआ अर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होता है)। प्रोक्तातु - IV.ii. 63 (द्वितीयासमर्थ) प्रोक्त प्रत्ययान्त प्रातिपदिक से (अध्येत, वेदित अर्थ में उत्पन्न प्रत्यय का लक हो जाता है। प्रोपाभ्याम् -I. iii. 42 . (समान अर्थ वाले) प्र तथा उप उपसर्ग से उत्तर (क्रम् धातु से आत्मनेपद होता है)। प्रोपाभ्याम् -I. iii. 64 (अयज्ञपात्र विषय में) प्र तथा उप पूर्वक (युजिर् योगे' धातु से आत्मनेपद हो जाता है)। ...प्रोष्ठपदाः - V. iv. 120 देखें - सुप्रातसुश्व० V. iv. 120 ...प्रोष्ठपदात् - IV. ii. 34 देखें – महाराजप्रोष्ठ० IV. ii. 34 ...प्रोष्ठपदानाम् -I. ii. 60 देखें - फल्गुनीप्रोष्ठपदानाम् I. 1.60 प्रोष्ठपदानाम् - VII. iii. 18 (जात' अर्थ में विहित जित.णित तथा कित तद्धित परे रहते) प्रोष्ठपद अङ्ग के (उत्तरपद के अचों में आदि अच को वृद्धि होती है)। ...प्लक्ष.. - VIII. iv.5 देखें-प्रनिरन्त: VIII. iv.5 प्लक्षादिभ्यः - IV. iii. 161. . (षष्ठीसमर्थ) प्लक्षादि प्रातिपदिकों से (फल के विकार और अवयव की विवक्षा होने पर अण् प्रत्यय होता है)। प्लक्ष = वटवृक्ष, गूलर का पेड़। ...प्लवति... - VII. iv. 81 देखें-स्त्रवतिशृणोति VII. iv.81 . प्लुत... - VI.i. 121 देखें - प्लुतप्रगृह्याः VI. i. 121 ....प्लुतः - I. ii. 27 देखें - ह्रस्वदीर्घप्लुतः I. ii. 27 . प्लुत: - VIII. ii. 82. (यह अधिकार सूत्र है, पाद की समाप्ति-पर्यन्त सर्वत्र । वाक्य के टि भाग को) प्लुत (उदात्त) होता है, (ऐसा अर्थ होता जायेगा। प्लुतप्रगृह्या: -VI. I. 121 प्लुत तथा प्रगृह्यसञक शब्द (अच् परे रहते नित्य ही प्रकृतिभाव से रहते हैं)। प्लुतौ - VIII. ii. 106 (ऐच के स्थान में जब प्लुत का प्रसङ्ग हो तो उस ऐच के अवयवभूत इकार, उकार) प्तुत होते हैं। ...प्लुवोः - III. i. 50 देखें - रुप्लुवोः III. iii. 50 ...प्लुवो: - VI. iv. 58 देखें- युप्लुवोः VI.iv.58 . प्वादीनाम् - VII. iii. 80 पूज् इत्यादि अगों को (शित् प्रत्यय परे रहते हस्व होता है)। ....प्वोः - VIII. iii. 37 देखें - कुप्वो: VIII. iii. 37 ...प्साति... - VIII. iv. 17 देखें - गदनदO VIII. iv. 17
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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