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________________ प्रियः 385 प्रियः - IV. iv.95 प्र... -III. I. 149 (षष्ठीसमर्थ हृदय प्रातिपदिक से) प्रिय अर्थ में (यत देखें-पुसल्वः III. I. 149 प्रत्यय होता है)। पुसल्यः -III. I. 149 ...प्रिययोः -VI.ii. 15 पु, स,लू धातुओं से (समभिहार गम्यमान होने पर वुन् देखें-सुखप्रिययो: VI. ii. 15 प्रत्यय होता है)। प्रियवशे-III. I. 38 प्रे-III. 1.6 प्रिय तथा वश (कर्म) के उपपद रहते (वद् धातु से खच् प्रउपसर्ग पूर्वक (दा और ज्ञा धातु से कर्म उपपद रहते प्रत्यय होता है)। . 'क' प्रत्यय होता है)। प्रियसुखयो: - VIII. 1. 13 प्रे-III. ii. 145 प्रिय तथा सुख शब्दों को (कष्ट न होना' अर्थ द्योत्य : हो तो विकल्प करके द्वित्व होता है. एवं उसको कर्मधा- प्रपूर्वक (लप,स,द्रु,मथ, वद, वस् - इन धातुओं से रयवत् कार्य होता है)। तच्छीलादि कर्ता हों तो वर्तमानकाल में घिनुण प्रत्यय प्रियस्थिरस्फिरोरुबहुलगुरुवृद्धतृप्रदीर्घवृन्दारकाणाम् - होता है)। VI. iv. 157 प्रे-III. iii. 27 प्रिय,स्थिर,स्फिर,उरु,बहुल,गुरु, वृद्ध,तृप्र,दीर्घ,वृन्दा- प्रपूर्वक (दू,स्तु,स्नु धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा रक-इन अङ्गों को (यथासङ्ख्य करके प्र,स्थ,स्फ,वर, भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। बंहि, गर, वर्षि,त्रप,द्राधि,वृन्द आदेश हो जाते हैं ; इष्ठन्, प्रे-III. iii. 32 इमनिच तथा ईयसुन् परे रहते)। ...प्रियात् - V. iv. 63 प्र पूर्वक (स्तृञ् आच्छादने धातु से यज्ञविषय को छोड़कर कर्तभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घन प्रत्यय • देखें - सुखप्रियात् V. iv.63 होता है)। ....प्रियादिषु - VI. iii. 33 देखें - अपूरणीप्रियादिषु VI. ill. 33 प्रे-III. iii. 46 ...प्रियेषु - III. ii. 56 (प्राप्त करने की इच्छा गम्यमान हो तो) प्र पूर्वक (ग्रह देखें-आढ्यसुभग III. ii. 56 धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घन प्रत्यय ...प्री... -III. I. 135 होता है। देखें-इगुपधज्ञा० III.i. 135 प्रे-III. iii. 52 प्रीती-VI. ii. 16 (वणिक् सम्बन्धी प्रत्ययान्त वाच्य हो तो) प्रपूर्वक (ग्रह प्रीति = लगाव गम्यमान हो तो (सुख तथा प्रिय शब्द धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में विकल्प से उत्तरपद रहते भी तत्पुरुष समास में पूर्वपद को प्रकृतिस्वर घञ् प्रत्यय होता है)। हो जाता है)। ...प्रेक्ष... -IV.ii.79 प्रीयमाण: -I. iv. 33 देखें - अरीहणकृशाश्व० [V.ii.79 (रुचि अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में) प्रीयमाण = प्रेष्य.. -II. iii. 61 प्रिय जिसको हो वह (कारक संप्रदानसजक होता है)। देखें-प्रेष्यब्रुवः II. iii. 61 ....... -I. iii. 86 ...प्रेष्य.. - VIII. ii. 91 देखें-बुधयुधनशजने I. iil.86 देखें-बूहिप्रेष्य VIII. 1.91
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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