SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 345 पञ्चम्या : -VII. I. 31 (युष्मद, अस्मद् अङ्ग से उत्तर) पञ्चमी विभक्ति के (भ्यस् के स्थान में अत् आदेश होता है)। पञ्चम्याः -VIII. iii. 51 (अधि के अर्थ में वर्तमान परि शब्द के परे रहते) पञ्चमी के (विसर्जनीय को सकारादेश होता है, वेद-विषय में)। पञ्चम्याम् -III. 1.98 (अगतिवाची) पञ्चम्यन्त उपपद रहते (जन्' धातु से भूतकाल में ड प्रत्यय होता है)। ...पञ्चम्यौ -II. iii.7 देखें - सप्तमीपञ्चम्यौ II. ii. 7 ...पञ्चानाम् - III. iv. 84 (बू धातु से परे जो लट् लकार, उसके स्थान में जो परस्मैपदसंज्ञक आदि के) पाँच आदेश, उनके स्थान में (क्रमशः पाँच ही णल, अतुस्, उस्, थल, अथुस, आदेश विकल्प से हो जाते हैं,साथ ही बू धातु को आह आदेश भी हो जाता है)। ...पञ्चाशत्... -V..58 देखें - पंक्तिविंशतिः V. 1. 58 ...पठ... -III. III. 64 देखें-गदनद III. 1.64 पण.. - V.I.34 देखें-पणपादमाष० V. 1. 34 पण = विनिमय करना, खरीदना, प्रशंसा करना। पणः -III. iii.66 (परिमाण गम्यमान होने पर) पण धातु से (नित्य ही कर्तृभिन्नकारक संज्ञा तथा भाव में अप् प्रत्यय होता है। पणपादमावशतात् - V.i. 34 (अध्यर्द्ध शब्द पूर्व वाले तथा द्विगुसज्ञक) पण, पाद, माष और शत शब्दान्त प्रातिपदिकों (से 'तदर्हति'- पर्यन्त कथित अर्थों में यत् प्रत्यय होता है)। ...पणि.. - III. 1. 28 देखें - गुप्यूपविच्छि III. 1. 28 ...पणितव्य... - III. 1. 101 देखें-गर्दापणितव्य III.1. 101 पणितव्य =बेचने योग्य। ....पणिन: - VI. iv. 165 देखें -गाथिविदथिVI. iv. 165 ...पणोः - II. 11.57 देखें - व्यवह्मणोः II. iii. 57 ...पण्य.. -III. I. 101 देखें-अवधपण्य III. 1. 101 पण्यकम्बलः -VI.ii. 42 'पण्यकम्बल' इस समास किये हुये शब्द के (पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है)। पण्यकम्बल = बिकाऊ कम्बल। पण्यम् -IV.iv.51 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में ठक् प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ) खरीदने योग्य हो। ...पण्यम् -VI. 1. 13 देखें - गन्तव्यपण्यम् VI. ii. 13 पत् -VI. iv. 130 (भसञक पाद शब्दान्त अङ्ग को) पत् आदेश हो जाता ...पत.. -III. I. 150 देखें- बुचक्रम्य III. II. 150 ....पत... -III. 1. 154 देखें- लषपत III. ii. 154 ...पत... -III. ii. 182 देखें -दाम्नी III. ii. 182 ...पत... -VII. iv. 54 देखें -मीमाधु० VII. iv. 54 ...पत... -VII. iv.84 देखें - कक्षुत्रंसु० VII. iv.84 ...पत... - VIII. iv. 17 देखें- गदनदO VIII. iv. 17
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy