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________________ ...तमस्.. 294 तल्लक्षण ...तमस्... -VII. ii. 18 तरति-Viv.5 देखें-मन्यमनस० VII. ii. 18 (तृतीयासमर्थ प्रातिपदिक से) तैरता है' अर्थ में (ठक तमसः -V.iv.79 प्रत्यय होता है)। (अव, सम् तथा अन्ध शब्दों से उत्तर) तमस-शब्दान्त तरप्... -1.1.21 प्रातिपदिक से (समासान्त अच् प्रत्यय होता है)। देखें-तरप्तमपौ I.1.21 ...तमसः - VI. iii.3 तरप्... -V. iii. 57 देखें-ओजसहोम्भ० VI. iii.3 देखें - तरबीयसुनौ Vill.57 ...तमसो: - III. ii. 50 तरप्तमपौ -1.1.21 देखें-क्लेशतमसोः III. 1.50 तरप् और तमप् प्रत्यय (घसंज्ञक होते हैं)।. . ...तमि.. -III. iv. 16 तरबीयसुनौ-v. iii. 57 देखें-स्थेण्कृष् III. iv. 16 - (द्वयर्थ तथा विभाग करने योग्य शब्द उपपद हों तो ...तमिस्रा... -v.il. 114 प्रातिपदिक से तथा तिङन्त से) तरप् तथा ईयसुन् प्रत्यय देखें-ज्योत्स्नातमित्रा० V. 1. 114 होते हैं। ...तय.. -I.1.32 तरित्रतः-VII. iv.65 देखें -प्रथमचरमतयाल्पाकतिपयनेमाः I. 1. 32 तरित्रतः शब्द (वेद-विषय में)निपातन किया जाता है। ...तयप्... - IV. 1. 15 तरुत -VII. II. 34 देखें-टिहाण IV.i. 15 तरुतृ शब्द (वेद-विषय में) इडभावयुक्त निपातित है। तयम्-V. 1.42 तख्त - VII. I. 34 (अवयव अर्थ में वर्तमान प्रथमासमर्थ सङ्ख्यावाची तरूतृ शब्द (वेदविषय में) इडभावयुक्त निपातित है। . प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में) तयप् प्रत्यय होता है। तल्-IV. II. 42 तयस्य - V. 1.43 ___ (षष्ठीसमर्थ ग्राम,जन, बन्धु प्रातिपदिकों से समूह अर्थ (प्रथमासमर्थ द्वि तथा त्रि प्रातिपदिकों से उत्तर षष्ठ्यर्थ में विहित) तयप् प्रत्यय के स्थान में विकल्प से अयच में) तल् प्रत्यय होता है। आदेश होता है)। तल - V. iv. 27 तयोः -III. iv.70 (देव प्रातिपदिक से स्वार्थ में) तल् प्रत्यय होता है। (कृत्यसंज्ञक प्रत्यय,क्त और खल् अर्थ वाले प्रत्यय) तलोप -IV.1.22 भाव और कर्म में (ही होते हैं)। (हेमन्त प्रातिपदिक से वैदिक तथा लौकिक प्रयोग में तयोः -v.ili. 20 . __ अण तथा ठञ् प्रत्यय होते हैं तथा उस अण् के परे रहने उन सप्तम्यन्त इदम् और तत् प्रातिपदिकों से पर हेमन्त शब्द के) तकार का लोप (भी) होता है। (यथासङ्ख्य करके वेदविषय में दा और हिल् प्रत्यय होते ...तलौ-v.i. 118 हैं तथा यथाप्राप्त दानीम् प्रत्यय भी होता है)। देखें - त्वतलो V. 1. 118 तयोः - VIII. II. 108 उनके अर्थात् प्लुत के प्रसङ्ग में एच के उत्तरार्ध को जो तल्लक्षणः - I. I. 65 इकार, उकार पूर्व सूत्र से विधान कर आये हैं, उन इकार (यदि) वृद्धयुवप्रत्ययनिमित्तक (ही भेद हो तो वृद्ध = उकार के स्थान में (क्रमशः य व आदेश हो जाते हैं; अच गोत्र प्रत्ययान्त शब्द युव प्रत्ययान्त के साथ शेष रह जाता परे रहते,सन्धि के विषय में)। है,युवप्रत्ययान्त का लोप हो जाता है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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