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________________ तन्नाम्नि 293 तमविष्ठनौ तन्नाम्नि -IV.ii.66 तपस्... - V. ii. 102 (अस्ति समानाधिकरण वाले प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से देखें- तप:सहस्राभ्याम् V. 1. 102 सप्तम्यर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है,यदि सप्तम्यर्थ से । तपःसहस्राभ्याम् -V.ii. 102 निर्दिष्ट) उस नाम वाला (देश हो,इतिकरण विवक्षार्थ है)। तपस और सहस्र प्रातिपदिकों से (यथासङ्ख्य करके तन्नामिकाभ्यः - IV.i. 113 'मत्वर्थ' में विनि तथा इनि प्रत्यय होते है)। (जिनकी वृद्धसंज्ञा न हो ऐसे नदी तथा मानुषी अर्थवाले) ...तपि... -III. ii. 46 तथा नदी,मानुषी नाम वाले प्रातिपदिकों से (अपत्य अर्थ देखें- भृतवृ० III. ii. 46 में अण प्रत्यय होता है)। ... तपो: - III. ii. 36 तन्निमित्तस्य -VI.1.77 देखें-दशितपोः III. I. 36 यकारादि प्रत्ययनिमित्तक (ही जो धातु का एच) उसको (यकारादि प्रत्यय के परे रहते वकारान्त अर्थात् अव आव् ...तपोभ्याम् - III. 1. 15 आदेश होते हैं,संहिता के विषय में)। देखें- रोमन्थतपोभ्याम् III. I. 15 ...तन्यो: -IV. iv. 128 तप्तनप्तनथनाः -VII.i. 45 देखें- मासतन्योः IV. iv. 128 (त के स्थान में) तप.तनप,तन.थन आदेश भी होते हैं, तप.. - VII.J. 45 . (वेद-विषय में)। देखें - तप्तनप्तन० VII. I. 45 ...तप्तात् - V.iv.81 तपः -II. . 26 देखें- अन्ववतप्तात् V. iv. 81 (उत् एवं वि उपसर्ग से उत्तर अकर्मक) तप् धातु से ...तम्... - III. iv. 101 (आत्मनेपद होता है)। देखें -तान्तन्तामः III. iv. 101 तपः-III. 1.65 तम् -V.1.79 सन्तापार्थक तपं धातु से उत्तर(च्लिको चिण आदेश नहीं द्वितीयासमर्थ (कालवाची प्रातिपदिकों से सत्कारपूर्वक होता;कर्मकर्ता में और अनुताप अर्थ में,त शब्द परे रहते)। व्यापार', खरीदा हुआ', हो चुका' और 'होने वाला' अतप-III. I. 88 थों में यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है)। (तपकर्मक) 'तप् संतापे' धातु का (ही कर्ता कर्मवत् तमट् - V. ii. 56 होता है)। (षष्ठीसमर्थ सङ्ख्यावाची विंशति आदि प्रातिपदिकों तपकर्मकस्य - III. i. 88 से पूरण अर्थ में विहित डट् प्रत्यय को विकल्प करके) तपकर्मक (तप् धातु) का (ही कर्ता कर्मवत् होता है)। तमट् आगम होता है। तपतौ - VIII. Iii. 102 तमप्... - V. iii. 55 (निस के सकार को) तपति परे रहते (अनासेवन अर्थ देखें-तमबिष्ठनौ v. iii. 55 में मूर्धन्य आदेश होता है)। ...तमपौ -I. 1.21 अनासेवन = बार-बार न करना। देखें - तरप्तमपौ I. 1.21 तपरः-I.i.68 ।त् परे वाला एवं त् से परे वाला (वर्ण अपने कालवाले तमबिष्ठनौ - V. iii. 55 सवर्णों का तथा अपना भी ग्रहण कराता है,भिन्नकाल वाले . (अत्यन्त प्रकर्ष अर्थ में प्रातिपदिक से) तमप् और इष्ठन् सवर्ण का नहीं)। प्रत्यय होते हैं।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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