SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अचडि अचि अचडि - VII. Iii. 56 अधि-IV.I.89 (अभ्यास से उत्तर 'हि गतौ' धातु के हकार को कवर्गा- . (प्राग्दीव्यतीय) अजादि प्रत्यय की विवक्षा हो तो (गोत्र देश होता है), चङ् परे न हो तो। में उत्पन्न प्रत्यय का लुक नहीं होता)। अचतुर... - V.i. 120 अधि-VI.1.74 देखें - अचतुरसंगतov.i. 120 • (इक = इउलू के स्थान में यथासङ्ख्य करके यण अचतुर....-V. iv.77 = य्व रल आदेश होते है).अच परे रहते.(संहिता के देखें - अचतुरविचतुर० v. iv. 77 विषय में)। - अचतुरविचतुरसुचतुरखीपुंसधेन्वनडुहर्कसामवाङ्मन- अधि-VI.I. 121 साक्षिषुवदारगवोर्वष्ठीवपदष्ठीवनक्तंदिवरात्रिन्दिवा- (प्लुत तथा प्रगृह्यसञक शब्द) अच् परे रहते (नित्य हर्दिवसरजसनिश्श्रेयसपुरुषायुषचायुषत्र्यायुषय॑जुष- ही प्रकृतिभाव से रहते है)। . जातोक्षमहोक्षवृद्धोक्षोपशुनगोष्ठश्वा:-V. iv.77 अचि-VI. 1. 130 ___ अचतुर, विचतुर, सुचतुर, स्त्रीपुंस, धेन्वनडुह, ऋक्साम, ('स' के सुका लोप होता है) अच् परे रहते,(यदि लोप वाङ्मनस. अक्षिभूव, दारगव, ऊवष्ठीव पदष्ठाव, होने पर पाद की पर्ति हो रही हो तो)। नक्तन्दिव,रात्रिन्दिव,अहर्दिव,सरजस,निस्त्रेयस,पुरुषा अधि-VI.I. 182 युष, व्यायुष, व्यायुष, ऋग्यजुष, जातोक्ष,महोक्ष, वृद्धोध, (स्वपादि धातुओं के तथा हिंस् धातु के) अजादि(अनिट् उपशुन तथा गोष्ठश्व शब्द अन्यत्ययान्त निपातन किये जाते हैं। .. सार्वधातुक) परे हो तो (विकल्प से आदि को उदास हो जाता है)। अचतुरसंगतलवणवटयुधकतरसलसेभ्य: -V. 1. 120 अचि-VI. III. 73 । (यहां से आगे जो भाब प्रत्यय कहे जायेंगे,वे प्रत्यय नब् पूर्ववाले तत्पुरुष-समासयुक्त प्रातिपदिकों से नहीं होंगे) (उस लुप्त नकार वाले नब् से उत्तर नुट् का आगम होता चतुर,संगत,लवण,वट,युध,कत,रस तथा लस शब्दों को है), अजादि शब्द के उत्तरपद रहते । छोड़कर। अचि-VI. III. 100 अचाम् -1.1.72 (कु को तत्पुरुष समास में ) अनादि शब्द उत्तरपद हो (जिस समुदाय के) अचों में (आदि अच् वृद्धिसंज्ञक हो, तो (कत् आदेश होता है)। . उस समुदाय की वृद्धसंज्ञा होती है)। अचि - VI. iv.63 ....अचाम् - VII. 1.70 अजादि (कित्,डित्) प्रत्ययों के परे रहते ( दीपातु से देखें- उगिदचाम् VII. I. 70 उत्तर युट् का आगम होता है)। अचाम् -VII. ii. 117 अचि-VI. iv.77 (जित, णित् तद्धित परे रहते, अङ्ग के) अचों के (आदि (श्नुप्रत्ययान्त अङ्ग तथा इवर्णान्त, उवर्णान्त धातु,एवं धू अच् को वृद्धि होती है)। शब्द को इयङ्,उवङ् आदेश होते है),अच् परे रहते। अचि - VII. 1.61 अचि -I.i. 58 अजादि प्रत्यय परे रहते (रध हिंसागत्योः' तथा 'जभ (द्विर्वचन का निमित्त) अजादि प्रत्यय परे हो तो (अजा गात्रविनामे' अङ्गको नुम आगम होता है)। देश स्थानिवत् होता है,द्विर्वचन मात्र करने में)। अचि-VII. 1.73 ...अचि -I. iv. 18 (इक अन्त वाले नपुंसक अङ्गको) अजादि विभक्ति) देखें- यचि I..iv. 18 परे रहते (नुम् आगम होता है)। अचि-II. iv.74 अचि -VII. 1.97 अच् प्रत्यय परे रहते (यङ् का लुक् होता है; चकार से (तृतीयादि) अबादि विभक्तियों के परे रहते (क्रोष्ट शब्द ' अच् परे न हो तो भी बहुल करके लुक् हो जाता है)। को विकल्प से तज्वत् अतिदेश होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy