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________________ अचि अजन्तस्य अचि-VII. ii. 89 (कोई आदेश जिसको नहीं हुआ है, ऐसी) अजादि (विभक्ति) के परे रहते (युष्मद्,अस्मद् अङ्गको यकारादेश होता है)। अचि -VII. II. 100 तिसृ और चतसृ अंगों के ऋकार के स्थान में ) अजादि (विभक्ति) परे रहते (रेफ आदेश होता है)। अचि - VII. H. 72 (क्स का) अजादि प्रत्यय परे रहते (लोप होता है)। अचि-VII. HI.87 (अभ्यस्तसज्जक अङ्गकी लघु उपधा इक को) अजादि (पित् सार्वधातुक) परे रहते (गुण नहीं होता)। अचि - VIII. I. 21 अजादि प्रत्यय परे रहते (ग धातु के रेफ को विकल्प करके लत्व होता है)। अचि - VIII. ii. 108 (उनके अर्थात् प्लुत के प्रसङ्ग में एच् के उत्तरार्द्ध को जो इकार उकार पूर्व सूत्र से विधान कर आये है, उन इकार उकार के स्थान में क्रमशः य व आदेश हो जाते है), अच् परे रहते, (सन्धि के विषय में)। अचि-VIII. ill. 32. (हस्व पद से उत्तर जो ङम, तदन्त पद से उत्तर ) अच् को (नित्य ही डमुटु आगम होता है)। अचि -VIII. iv. 48 अच परे रहते (शर प्रत्याहार को द्वित्व नहीं होता)। अचिण... -VII. iii. 32 देखें-अचिण्णलो: VII. iii. 32 अचिण्णलो: -VII. iii. 32 (हन अङ्ग को तकारादेश होता है), चिण तथा णल प्रत्ययों को छोड़कर जित्.णित् प्रत्यय परे रहते)। अचित्त....- IV.ii.46 देखें- अचितहस्ति० IV. 1.46 अचितहस्तिधेनोः - IV. ii. 46 (षष्ठीसमर्थ) अचेतनवाची तथा हस्तिन् और धेनु शब्दों से (समूहार्थ में ठक् प्रत्यय होता है)। अचित्तात् - IV. iii. 96 .. (प्रथमासमर्थ भक्तिसमानाधिकरणवाची, देशकाल को छोड़कर जो) अचेतनवाची प्रातिपदिक, उनसे (षष्ठ्यर्थ में ठक् प्रत्यय होता है)। अचिरापहते - V. 1.70 (सप्तमीसमर्थ तन्त्र प्रातिपदिक से) 'अचिरापहतः = थोड़ा काल खड्डी से बाहर निकलने को बीता है अर्थात् तत्काल बुना हुआ अर्थ में (कन् प्रत्यय होता है)। अचिरोपसम्पती - VI. ii. 56 अचिरकाल सम्बन्ध गम्यमान हो तो (प्रथम पूर्वपद को विकल्प से प्रकृतिस्वर होता है)। अच्कौ -VI. ii. 157 (न से उत्तर) अच् प्रत्ययान्त तथा क प्रत्ययान्त उत्तरपद को (अशक्ति गम्यमान हो तो अन्तोदात्त होता है)। अच्छ -I. iv. 68 (गत्यर्थक तथा वद धातु के प्रयोग में) अव्यय अच्छ शब्द (गति और निपातसंज्ञक होता है)। अच्छन्दसि - V. iii. 49 (भाग' अर्थ में वर्तमान पूरणप्रत्ययान्त एकादश सङ्ख्या से पहले-पहले जो सङ्ख्यावाची शब्द, उनसे स्वार्थ में अन् प्रत्यय होता है).वेदविषय को छोड़कर। ...अच्यरः -VIII. 11.87 देखें- यच्यरः VIII. iii. 87 अच्चेः -III. 1. 12 च्चिप्रत्ययान्त से भिन्न (भृश आदियों) से (भवति के अर्थ में क्यङ् प्रत्यय होता है,और हलन्तों का लोप भी)। अच्ची -III. 1. 56 . (सुभग, स्थूल, पलित, नग्न, अन्ध, प्रिय, ये च्यर्थ में 'वर्तमान) अच्चिप्रत्ययान्त (कर्म) उपपद रहते (कृ धातु से करण कारक में ख्युन् प्रत्यय होता है)। अज...-V.i.8 . देखें- अजाविभ्याम् V.i.8 अजः-III. iii. 69 (सम, उत् पूर्वक) अज धातु से (कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में समुदाय से पशविषय प्रतीत हो तो अप प्रत्यय होता है)। ...अजगात् - V. ii. 110 देखें - गाण्ड्य जगात् V. ii. 110
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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