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________________ अच् अचः अच् -III. Ill. 56 अच: -III. 1.97 (इवर्णान्त धातुओं से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव अजन्त धातु से (यत् प्रत्यय होता है)। में) अच् प्रत्यय होता है। ...अच: - III. I. 134 अच् - V. ii. 127 देखें - ल्युणिन्यच: III. I. 134 (अर्शस आदि गणपठित प्रातिपदिकों से मत्वर्थ में) अच अच: - V. iii. 83. प्रत्यय होता है। (इस प्रकरण में पठित ढ तथा अजादि प्रत्ययों के परे अच् -.iv.75 रहते दूसरे) अच् से (बाद के शब्दरूप का लोप हो जाता (प्रति, अनु तथा अव पूर्ववाले सामन् और लोमन् प्रातिपदिकों से समासान्त) अच् प्रत्यय होता है। अच: -VI. 1. 189 अच -v.iv. 118 (कर्ता में विहित यक् प्रत्यय के परे रहते उपदेश में जो) .. (नासिकाशब्दान्त बहुव्रीहि समास से समाविषय में अजन्त धातुर्ये, उनको विकल्प से उदात्त हो जाता है)। समासान्त) अच् प्रत्यय होता है (तथा नासिका शब्द के अच: -VI. iv. 138 स्थान में नस् आदेश भी होता है, यदि वह नासिका शब्द (भसजक) लुप्तनकार वाले अबु धातु के (अकार का . स्थूल शब्द से उत्तर न हो तो)। लोप होता है)। ...अच्...-VI. II. 144 ... अचः -VII. 1.72 देखें-थाथप.VI. 1. 144 • देखें-झलच: VII. 1.72 अच्... -VI. II. 157. अचः -VII. ii.3 देखें- अच्को VI. 1. 157 (वद,वज तथा हलन्त अङ्गों के) अच् के स्थान में (वृद्धि । अच्... -VI. iv. 16. होती है, परस्मैपदपरक सिच् परे हो तो)। देखें-अज्ज्ञानगमाम् VI. iv. 16. अच:-VII. 1.61 . अच्... - VI. iv. 62. (उपदेश में) जो अजन्त धात (तास परे रहते नित्य देखें - अान० VI. iv. 62. अनिट),उससे उत्तर (तास के समान ही थल को इट् का अच: -1.1.46 आगम नहीं होता)। (मित् आगम) अचों के मध्य में (जो अन्तिम अच.उसके । अच:-VII. 1. 115 आगे होता है)। अजन्त अङ्गको जित,णित् प्रत्यय परे रहते वृद्धि होती अव:-1.1.56 (पर को निमित्त मानकर) अच के स्थान में विहित अच: - VII. iv. 47 आदेश पूर्व की विधि करने में स्थानिवत् हो जाता है)। अजन्त (उपसगी से उत्तर (घुसज्ञक दा अङ्गको तकारादि अथ:-1.1.63 कित् प्रत्यय परे रहते तकारादेश होता है)। अचों के मध्य में (जो अन्त्य अच वह अन्त्य अच आदि है जिस समुदाय का,उस समुदाय की टि संज्ञा होती है। (मी,मा एवं घुसजक तथारभ,डुलभष,शक्ल,पत्ल और पद् अङ्गों के) अच् के स्थान में (इस आदेश होता है, अच:-1.1.28 सकारादि सन् परेरहते)। (हस्व हो जाये, दीर्घ हो जाये और प्लुत हो जाये अच: -VIII. iv. 28 ऐसा नाम लेकर जब कहा जावे तो वह पूर्वोक्त हस्व, अच से उत्तर(कत में स्थित जो नकार.उसको उपसर्ग में दीर्घ,प्लुत) अच के स्थान में (ही हो)। स्थित निमित्त से उत्तर णकारादेश होता है)। अच:-III. 1.62. अच: - VIII. iv. 45 . अवन्त धातु से उत्तर (ब्लिको विकल्प से चिण आदेश अच से उत्तर (वर्तमान रेफ और हकार से उत्तर यर को होता है,कर्मकर्तवाची लुङमें 'त' शब्द परे हो तो)। विकल्प से द्वित्व होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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