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________________ 242 च-VIII. 1.34 (हि शब्द से युक्त तिडन्त) भी (अनुकूलता गम्यमान होने पर अनुदात्त नहीं होता)। च-VIII. 1. 38 (यावत् और यथा से युक्त एवं उपसर्ग से व्यवहित तिङ्को ) भी (पूजा-विषय में अननुदात्त नहीं होता, अर्थात् अनुदात्त होता है)। च-VIII. 1.40 (अहो शब्द से युक्त तिङन्तको) भी (पूजा विषय में अनुदात्त नहीं होता)। च-VIII. 1. 42 (पुरा शब्द से युक्त तिङन्त को) भी (शीघ्रता अर्थ गम्यमान होने पर अनुदात्त नहीं होता)। । च-VIII. I. 48 जिससे उत्तर चित् है तथा जिससे पूर्व कोई शब्द नहीं है, ऐसे किंवृत्त शब्द से युक्त तिङन्त को) भी (अनुदात्त नहीं होता)। च-VIII. I. 49 (अविद्यमान पूर्ववाले आहो, उताहो से युक्त व्यवधा- नरहित तिङ् को) भी (अनुदात्त नहीं होता है)। च - VIII.1.52 (गत्यर्थक धातुओं के लोडन्त से युक्त लोडन्त को) भी (अनुदात्त नही हाता, यदि कारक सारे अन्य न हो तो)। च - VIII. 1.53 (हन्त से युक्त सोपसर्ग उत्तमपुरुषवर्जित लोडन्त तिङन्त को) भी विकल्प से अनुदात्त नहीं होता)। च-VIII. 1. 58 - (चादियों के परे रहते) भी (गतिभिन्न पद से उत्तर तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता)। च.. -VIII. 1.59 देखें-चवायोगे VIII. I. 59 च.. -VIII. 1.61 (अह' से युक्त प्रथम तिङन्त को विनियोग) तथा (क्षिया अर्थात् अनौचित्य गम्यमान होने पर अनुदात्त नहीं होता)। च-VIII. 1.62 देखें-चाहलोपे च VIII.1.62 च -VIII. 1.64 (वै तथा वाव से युक्त प्रथम तिङन्त को) भी विकल्प से वेद-विषय में अनुदात्त नहीं होता)। च - VIII. 1.69 (गोत्रादिगण-पठित शब्दों को छोड़कर निन्दावाची सुबन्त शब्दों के परे रहते) भी (सगतिक एवं अगतिक दोनों तिङन्तों को अनुदात्त होता है)। .. च - VIII. 1.70 (उदात्तवान् तिङन्त के परे रहते) भी (गतिसञक को. निघात होता है)। च-VIII. 1.9 (मकारान्त एवं अवर्णान्त तथा मकार एवं अवर्ण उपधा : वाले प्रातिपदिक से उत्तर मतुप को वकारादेश होता है, किन्तु यवादि शब्दों से उत्तर मतुप् को व नहीं होता)। . च-VII. I. 13 (उदन्वान् शब्द उदधि) तथा (सञ्जा-विषय में निपादन च-VIII. 1.22 (परि के रेफ को) भी (ध तथा अङ्कशब्द परे रहते विकल्प से लत्व होता है)। च-VIII. ii. 25 (धकारादि प्रत्यय के परे रहते) भी (सकार का लोप होता च - VIII. 1. 29 (पद के अन्त में) तथा (झल परे रहते संयोग के आदि के सकार तथा ककार का लोप होता है)। च-VIII. il. 38 (झषन्त दध् धातु के बश् के स्थान में भष् आदेश होता है; तकार तथा थकार परे रहते) तथा (झलादि सकार एवं ध्व परे रहते भी)। च-VIII. ii. 42 रेफ तथा दकार से उत्तर निष्ठा के तकार को नकारादेश होता है) तथा (निष्ठा के तकार से पूर्व के दकार को भी नकारादेश होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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