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________________ 243 च-VIII. ii. 45 (ओकार इत् वाले धातुओं से उत्तर) भी (निष्ठा के त को नकारादेश होता है)। च-VII. 1.65 (मकार तथा वकार परे रहते) भी (मकारान्त धातु को नकाराटेसा होता है)। च.-III. 1.67 (अवयाः, श्वेतवा) तथा (पुरोडाः- ये शब्द दीर्घ किये हुये सम्बुद्धि में निपातन है)। च-VIII. 1.71 . (महाव्याहृति भुवस् शब्द को) भी (वेद-विषय में दोनों प्रकार से अर्थात् रु एवं रेफ दोनों ही होते है)। च-VIII. 1.75 (दकारान्त जो पद् धातु, उसको) भी (सिप् परे रहते विकल्प से रु आदेश होता है)। च-VIII. 1.77 (हल् परे रहते) भी रेफान्त एवं वकारान्त धातु की उप- धाभूत इक् को दीर्घ होता है)। च-VIII. II. 78 . (हल् परे रहते धातु के उपधाभूत रेफ एवं वकार के परे - रहते उपधा इक् को) भी (दीर्घ होता है)। - च-VIII. 1.84 (दर से बुलाने में जो प्रयुक्त वाक्य,उसकी टि को) भी (प्लुत उदात्त होता है)। च-VIH. 1.93 (अग्नीत के प्रेषण में पद के आदि को प्लुत उदात्त होता है), तथा (उससे परे को भी होता है, यज्ञकर्म में)। च-VIII. 1. 94 (निग्रह करने के पश्चात् अनुयोग में वर्तमान जो वाक्य - उसकी टि को) भी विकल्प से प्लुत उदात्त होता है)। च-VIII. 1.99 (प्रतिश्रवण में वर्तमान वाक्य की टि को) भी (प्लुत उदात्त होता है)। च-VIII. ii. 101 (चित् यह निपात) भी (जब उपमा के अर्थ में प्रयुक्त हो, तो वाक्य की टि को अनुदात्त प्लत होता है।। च-VIII. ii. 102 (उपरि स्विदासीत्' इसकी टि को) भी (प्लुत अनुदात्त होता है)। च-VIII. iii. 21 (अवर्ण पूर्ववाले पदान्त यत् का उब् पद के परे रहते) भी (लोप होता है)। च - VIII. II. 24 (अपदान्त नकार को ती चकार से मकार को) भी (झल परे रहते अनुस्वार आदेश होता है)। च -VIII. iii. 30 (नकारान्त पद से उत्तर) भी (सकारादि पद को विकल्प से धुट का आगम होता है)। च-VIII. III. 37 (कवर्ग तथा पवर्ग परे रहते विसर्जनीय को यथासङ्ख्य करके = क अर्थात् जिह्वामूलीय तथा = प अर्थात् उपध्मानीय आदेश होते है).तथा चकार से विसर्जनीय भी होता है)। च-VIII. iii. 41 (इकार और उकार उपधा वाले प्रत्ययभिन्न समुदाय के विसर्जनीय को) भी (षकार आदेश होता है; कवर्ग, पवर्ग परे रहते)। च-VIII. III. 48 (कस्कादि-गणपठित शब्दों के विसर्जनीय को) भी (सकार अथवा षकार आदेश यथायोग से होता है;कवर्ग. पवर्ग परे रहते)। च-VIII. 1. 52 (पा धातु के प्रयोग परे हों तो) भी (पञ्चमी के विसर्जनीय को बहल करके सकार आदेश होता है.वेद-विषय में)। च -VIII. iii. 60 (इण तथा कवर्ग से उत्तर शासु, वस् तथा घस् के सकार को) भी (मूर्धन्य आदेश होता है)। च-VIII. iii. 62 (अभ्यास के इण से उत्तर ण्यन्त जिष्विदा,ष्वद तथा षह धातुओं के सकार को सकारादेश होता है, षत्वभूत सन् के परे रहते) भी।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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