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________________ 233 च-VI. ii. 51 (तवै प्रत्यय को अन्त उदात्त भी होता है), तथा (अनन्तर पूर्वपद गति को भी प्रकृतिस्वर एक साथ होता है)। च-VI. ii. 53 (वप्रत्ययान्त अञ्च धातु के परे रहते नि तथा अधि को) भी (प्रकृतिस्वर होता है)। च-VI. ii.59 (बाह्मण तथा कुमार शब्द उपपद रहते कर्मधारय समास में पूर्वपद राजन् शब्द को) भी (विकल्प से प्रकृतिस्वर होता है)। च -VI. 1.63 (प्रशंसा गम्यमान हो तो शिल्पिवाची शब्द उत्तरपद रहते राजन् पूर्वपद वाले शब्द को) भी (विकल्प से प्रकृतिस्वर होता है)। च-VI. ii.65 (युक्तवाची समास में) भी (पूर्वपद को आधुदात्त होता रा " च-VI. 1.68 (शिल्पिवाची शब्द उत्तरपद रहते पाप शब्द को) भी (विकल्प से आधुदात्त होता है)। च-VI.ii.76 शिल्पिवाची समास में) भी (अणन्त उत्तरपद रहते पर्व- पद को आधुदात्त होता है, यदि वह अण कृज से परे न हो)। च-VI. 1.77 (समाविषय में) भी (अणन्त उत्तरपद रहते पर्वपद को आधुदात्त होता है, यदि वह अण् कृञ् से परे न हो तो)। च-VI. 1. 81 (युक्तारोही आदि समस्त शब्दों को भी (आद्यदात्त हो- ता है)। च-VI. ii. 85 (घोषादि शब्दों के उत्तरपद रहते) भी (पूर्वपद को आधु- दात्त होता है)। च-VI. 1.88 (प्रस्थ शब्द उत्तरपद रहते पूर्वपद मालादि शब्दों को) भी (आधुदात्त होता है)। च-VI. 1. 90 (अर्म शब्द उत्तरपद रहते) भी (अवर्णान्त जो दो अचों वाले तथा तीन अचों वाले महत्, नव से भिन्न पूर्वपद, उन्हें आधुदात्त होता है)। च- 1100 (अरिष्ट तथा गौड शब्द पूर्व हैं जिस समास में, उसके पूर्वपद को) भी (पुर शब्द उत्तरपद रहते अन्तोदात्त होता है)। च -VI. ii. 104 (आचार्य है अप्रधान जिसका, ऐसा जो अन्तेवासी, उसको कहने वाले शब्द के परे रहते) भी (दिशा अर्थ में प्रयुक्त होने वाले पूर्वपद शब्दों को अन्तोदात्त होता है)। च-VI. 1. 105 (उत्तरपदस्य' VII. iii. 10 सूत्र के अधिकार में कही जो वृद्धि,उस वृद्धि किये हुये शब्द के परे रहते सर्व शब्द) तथा (दिग्वाची शब्द पूर्वपद को अन्तोदात्त होता है)। च-VI. ii. 113 (सञ्जा तथा उपमा विषय में वर्तमान जो बहुव्रीहि,वहाँ) भी (उत्तरपद कर्ण शब्द को आधुदात्त होता है)। च-VI. ii. 114 (सजा तथा औपम्य विषय में वर्तमान बहुव्रीहि समास में कण्ठ, पृष्ठ, ग्रीवा, जवा इन उत्तरपद शब्दों को) भी (आधुदात्त होता है)। च-VI. 1. 115 (अवस्था गम्यमान होने पर) तथा (सज्ञा एवं उपमा विषय में बहुव्रीहि समास को आधुदात्त होता है। शृङ्ग उत्तरपद रहते)। च-VI. II. 118 (सु से उत्तर क्रत्वादि शब्दों को) भी (आधुदात्त होता है)। च-VI. 1. 120 (बहुव्रीहि समास में सु से उत्तर वीर तथा वीर्य शब्दों को) भी (वेद-विषय में आधुदात्त होता है)। च-VI. ii. 124 (नपुंसकलिङ्ग कन्थान्त तत्पुरुष समास में) भी (उत्तरपद आधुदात्त होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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