SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 232 च-VI.1.147 च-VI. 1. 206 (प्रतिष्कश शब्द में प्रतिपूर्वक कश् धातु को सुट् आगम) ( विभक्ति परे रहते) भी (युष्मद्, अस्मद् को आधुतथा (उसी सुट् के सकार को षत्व का निपातन किया दात्त होता है)। जाता है)। च-VI. 1. 16 च -VI. 1. 151 (प्रीति गम्यमान हो रही हो, तो सुख तथा प्रिय शब्द (पारस्कर इत्यादि शब्दों में) भी (सट आगम निपातन । उत्तरपद रहते) भी (तत्पुरुष समास में पूर्वपद को प्रकृतिकिया जाता है, सजा के विषय में)। स्वर हो जाता है)। च-VI.i. 154 . च-VI. 1. 26 (उञ्छादि शब्दों को) भी (अन्तोदात्त हो जाता है)। (पूर्वपदस्थित कुमार शब्द को) भी (कर्मधारय समास च - VI. 1. 155 में प्रकृतिस्वर होता है)। लोप होता है, च-VI. 1. 31 उस अनुदात्त को) भी (आदि उदात्त हो जाता है)। (द्विगु समास में दिष्टि तथा वितस्ति शब्दों के परे रहते) ' च -VI.1. 178 भी (विकल्प करके पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है)। (न से परे) भी (झलादि विभक्ति विकल्प से उदात्त नहीं होती)। (आचार्य है अप्रधान जिसमें, ऐसे शिष्यवाची शब्दों च -VI.1. 184 का जो द्वन्द्व,उनके पूर्वपद को) भी (प्रकृतिस्वर होता है)। (जिसमें उदात्त अविद्यमान है,ऐसे ल सार्वधातुक के परे च- VI. ii. 37 रहते) भी (अभ्यस्त सजकों के आदि को उदात्त होता (कार्त्तकोजपादि जो द्वन्द्व समास वाले शब्द,उनके पूर्व पद को) भी (प्रकृतिस्वर हो जाता है)। च -VI. 1. 190 च-VI. I. 39 (सेट थल परे रहते इट को विकल्प से उदात्त होता है. (वैश्वदेव शब्द उत्तरपद रहते पूर्वपदस्थित क्षुल्लक एवं) चकार से (आदि को, अन्त को विकल्प से होता है। शब्द) तथा (महान् शब्द को प्रकृतिस्वर होता है)। च-VI. 1. 192 च-VI. I. 42 (कुरुगार्हपत, रिक्तगुरु, असूतजरती, अश्लीलदृढरूपा, (आमन्त्रित सञक के) भी (आदि को उदात्त होता है। पारेवडवा, तैतिलकद्रू, पण्यकम्बल-इन सात समास च-VI.1.194 किये हुए शब्दों के) तथा (दासीभारादि शब्दों के पूर्वपद (तवै'-प्रत्ययान्त शब्द का आद्य स्वर भी उदात्त हो जाता को प्रकृतिस्वर होता है)। है, और अन्त्य स्वर) भी। च-VI. ii. 45 च-VI.i. 197 (क्तान्त शब्द उत्तरपद रहते) भी (चतुर्थ्यन्त पूर्वपद को (वृषादि शब्दों के) भी (आदि को उदात्त होता है। प्रकृतिस्वर हो जाता है)। च-VI. 1. 199 च-VI. 1.50 (दो अचों वाले निष्ठान्त शब्दों के) भी (आदि को उदात्त (तु शब्द को छोड़कर तकारादि एवं नकार इत्सजक कृत् के परे रहते) भी (अव्यवहित पूर्वपद गति को प्रकृतिस्वर होता है, सज्ञा विषय में, आकार को छोड़कर)। होता है)। च-VI.1.203 च-VI.ii. 51 (जुष्ट तथा अर्पित शब्दों को) भी (वेद-विषय में विकल्प (तवै प्रत्यय को अन्त उदात्त) भी होता है, तथा अव्यसे आधुदात्त होता है)। वहित पूर्वपद गति को भी प्रकृतिस्वर एक साथ होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy