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________________ 215 च- III. iii. 79 च- III. iii. 116 (गृह का एकदेश वाच्य हो तो प्रघण और प्रघाण शब्द (जिस कर्म के संस्पर्श से कर्ता के शरीर में सुख उत्पन्न में प्र-पूर्वक हन् धातु से अप् प्रत्यय) और (हन को घन हो, ऐसे कर्म के उपपद रहते) भी (धातु से ल्युट् प्रत्यय आदेश कर्तभिन्न कारक में निपातन किये जाते है)। होता है)। च-III. iii. 83 च- III. iii. 117 (स्तम्ब शब्द उपपद रहते करण कारक में हन् धातु से (धातु से करण और अधिकरण कारक में) भी (ल्युट क तथा अप् प्रत्यय) भी होता है, और अप् प्रत्यय परे प्रत्यय होता है)। रहने पर हन को घन आदेश भी हो जाता है)। च- III. iii. 119 च- III. 1. 93 (गोचर, सञ्चर, वह, व्रज, व्यज, आपण और निगम शब्द) भी (घ-प्रत्ययान्त पुंल्लिङ्ग करण या अधिकरण __ (कर्म उपपद रहने पर अधिकरण कारक में) भी (घु कारक में संज्ञा विषय में निपातन किये जाते है)। संज्ञक धातुओं से कि प्रत्यय होता है)। च-III. iii. 121 च- III. 1.97 (हलन्त धातुओं से) भी (संज्ञाविषय होने पर करण तथा (ऊति, यति, जूति, साति, हेति और कीर्ति शब्द) भी अधिकरण कारक में प्रायः करके घञ् प्रत्यय होता है, (अन्तोदात्त निपातन से सिद्ध होते हैं)। पुंल्लिङ्ग में)। . च- III. II. 100 च-III. iii. 122 . (कृज् धातु से स्त्रीलिङ्ग कर्तभिन्न संज्ञा तथा भाव में (अध्याय,न्याय,उद्याव तथा संहार-ये घजन्त शब्द) श प्रत्यय होता है, तथा) चकार से क्यप भी होता है। भा (पुल्लिङ्ग करण तथा अधिकरण कारक संज्ञा में निपा तन किये जाते है)। च-III. 1. 103 · उद्याव = सबके एकत्र होने का स्थान। (हलन्त,जो गुरुमान् धातु, उनसे) भी (स्त्रीलिङ्ग कर्तृ च -III. iii. 125 भिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में अप्रत्यय हो जाता है)। (खन् धातु से पुंल्लिङ्ग करणाधिकरण कारक संज्ञा में च- III. iii. 105 घ प्रत्यय होता है, तथा) चकार से घञ् भी होता है। '. (चिन्त, पूज, कथ, कुम्ब तथा चर्च् धातुओं से) भी च-III. ii. 127 (स्त्रीलिङ्गकर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में अङ् प्रत्यय होता है)। (भू तथा कृञ् धातु से यथासङ्ख्य करके कर्ता एवं कर्म उपपद रहते चकार से दुःख अथवा सुख अर्थ में च-III. iii. 106 वर्तमान ईषद्,दुस् तथा सु उपपद हों तो) भी (खल् प्रत्यय (उपसर्ग उपपद रहते आकारान्त धातुओं से) भी होता है)। (स्त्रीलिङग कर्तभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव म अङ् च-III. iii. 132 प्रत्यय होता है)। (आशंसा गम्यमान होने पर धातु से भूतकाल के समान च- III. iii. 110 तथा वर्तमानकाल के समान) भी (विकल्प से प्रत्यय हो (उत्तर तथा परिप्रश्न गम्यमान होने पर धातु से स्त्रीलिङ्ग जाते है)। कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में विकल्प से इञ् प्रत्यय . च- III. iii. 137 होता है, तथा) चकार से ण्वुल भी होता है। (कालकृत मर्यादा में अवर भाग को कहना हो तो) भी च- II. II. 115 (भविष्यत् काल में धातु से अनद्यतनवत् प्रत्ययविधि नहीं (नपुंसकलिङ्ग भाव में धातु से ल्युट् प्रत्यय) भी (होता होती.यदि वह काल का मर्यादा-विभाग दिनरातसम्बन्धी न हो)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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