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________________ 214 च- III. ill.7 (चाहे जाते हुये अभीष्ट पदार्थ से सिद्धि गम्यमान हो तो) भी (भविष्यत् काल में धातु से विकल्प से लट् प्रत्यय होता है)। चं-III. ill.8 (लोडर्थ लक्षण में वर्तमान धातु से) भी (भविष्यत् काल में विकल्प से लट् प्रत्यय होता है)। च-III. 1.9 (मुहर्त से ऊपर भविष्यकाल को कहना हो तो लोडर्थ- लक्षण में वर्तमान धातु से लिङ् प्रत्यय भी होता है, और लट) भी। च- III. iii. 11 क्रियार्थ क्रिया उपपद हो तो भविष्यकाल में धातु से भाववाचक प्रत्यय) भी होते है)। च-III. iii. 12 (क्रियार्थ क्रिया) तथा (कर्म उपपद रहते हुए धातु से भविष्यत् काल में अण प्रत्यय होता है)। च- III. iii. 13 (धातु से केवल भविष्यत् काल में) तथा चकार से क्रियार्थ क्रिया उपपद रहने पर भी (भविष्यत् काल में लृट् प्रत्यय होता है)। च- III. iii. 19 (कर्तभिन्न कारक में) भी (धातु से संज्ञाविषय में घन् प्रत्यय होता है)। च -III. 1. 21 (इङ् धातु से) भी (कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। च-III. iii. 34 विपूर्वक स्तन धातु से छन्द का नाम कहना हो तो) भी (कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है। च-III. 11.40 (चोरी से भिन्न. हाथ से ग्रहण करना गम्यमान हो तो) चिञ् धातु से (कर्तृभिन्न कारक और भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। च-III. iii. 41 (निवास,जो चुना जाये,शरीर तथा राशि अर्थों में चिञ् धातु से घञ् प्रत्यय होता है) तथा (चि के आदि चकार को ककारादेश हो जाता है, कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में)। च-III. Iii. 42 ऊपर नीचे स्थित न होने वाला संघ वाच्य हो तो) भी (चिञ् धातु से घञ् प्रत्यय होता है, तथा आदि चकार को ककारादेश हो जाता है, कर्तृभिन्न कारक संज्ञा एवं भाव में)। च - III. iii. 53 (घोड़े की लगाम वाच्य हो तो) भी (प्रपूर्वक ग्रह धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है,पक्ष में अप् होता है)। च- III. iii. 58 (प्रह,व,दृ तथा निर् पूर्वक चि एवं गम् धातुओं से) भी (कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में अप् प्रत्यय होता है)। च-III. 11.60 निपूर्वक अद् धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में ण प्रत्यय भी होता है, अप) भी। च- III. iii. 63 (सम.उप.नि.वि उपसर्ग पर्वक तथा निरुपसर्ग) भी . (यम् धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में विकल्प से अप् प्रत्यय होता है), पक्ष में घञ्। च - III. iii. 65 . नि-पूर्वक, अनुपसर्ग तथा वीणा विषय होने पर) भी (क्वण धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में विकल्प से अप् प्रत्यय होता है, पक्ष में घड़)। च-III. iii. 72 (नि, अभि, उप तथा वि पूर्वक हे धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में अप् प्रत्यय होता है, तथा हे को सम्प्रसारण) भी होता है)। च- II. ifi.16 (हन् धातु से भाव में अप् प्रत्यय होता है, तथा प्रत्यय के साथ ही (हन् को वध आदश भी हो जाता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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