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________________ 216 च- III. iii. 140 च-III. iii. 171 लिङ्का निमित्त हेतुहेतुमत् आदि हो तो क्रियातिपत्ति (आवश्यक और आधमर्ण्य विशिष्ट अर्थ हों तो धातु से होने पर भूतकाल में) भी (धातु से लङ् प्रत्यय होता है)। कत्यसंज्ञक प्रत्यय) भी हो जाते है)। च-III. iii. 143 च-III. iii. 172 ___(गर्दा गम्यमान हो तो कथम् शब्द उपपद रहते (शक्यार्थ गम्यमान हो तो धातु से लिङ् प्रत्यय होता है, विकल्प से लिङ् प्रत्यय होता है), तथा चकार से लट् तथा) चकार से कृत्यसंज्ञक प्रत्यय भी होते हैं। प्रत्यय भी होता है। च-III. iii. 174 च - III. ill. 149 (आशीर्वाद विषय में धातु से क्तिच् और क्त प्रत्यय) (गर्दा गम्यमान हो तो) भी (यच्च और यत्र उपपद रहते भी होते हैं, यदि समुदाय से संज्ञा प्रतीत हो)। धातु से लिङ् प्रत्यय होता है)। च-III. iii. 176 च- III. iii. 150 (माङ् शब्द के साथ स्म शब्द भी उपपद रहते धात (आश्चर्य गम्यमान हो तो) भी (यच्च और यत्र उपपद से लङ् तथा) चकार से लुङ् प्रत्यय होता है। रहने पर धातु से लिङ् प्रत्यय होता है)। च-III. iv.2 (क्रिया का पौनःपुन्य गम्यमान हो तो धातु से धात्वर्थच-III. III. 159 सम्बन्ध होने पर सब कालों में लोट् प्रत्यय हो जाता है, (समानकर्तृक इच्छार्थक धातुओं के उपपद रहते धातु और उस लोट् के स्थान में नित्य हि और स्व आदेश होते से लिङ् प्रत्यय) भी (होता है)। है),तथा (त, ध्वम् भावी लोट के स्थान में विकल्प से हि. च-III. III. 162 स्व आदेश होते है)। (विधि, निमन्त्रण, आमन्त्रण, सम्प्रश्न, प्रार्थना अर्थों में च-III. iv.8 लोट् प्रत्यय) भी होता है। (उपसंवाद तथा आशंका गम्यमान हो तो) भी (धातु से - च-III. III. 163 वेद-विषय में लेट् प्रत्यय होता है)। (प्रेषण करना, कामचार पूर्वक आज्ञा देना, समय आ च - III. iv. 11 जाना - इन अर्थों में धातु से कृत्य संज्ञक प्रत्यय होते हैं, (दृशे तथा विख्ये शब्द) भी ( वेदविषय में तुमुन् के तथा) चकार से लोट् भी होता है। अर्थ में के प्रत्ययान्त निपातन किये जाते हैं)। च-III. 1. 164 च-III. iv. 15 (प्रैष, अतिसर्ग,तथा प्राप्तकाल अर्थ गम्यमान हों तो (कृत्यार्थ अभिधेय हो, तो वेद-विषय में अव-पूर्वक मुहूर्त से ऊपर के काल को कहने में धातु से लिङ् प्रत्यय चक्षिङ् धातु से शेन् प्रत्ययान्त अवचक्षे शब्द) भी (निपाहोता है, तथा) चकार से यथाप्राप्त कृत्यसंज्ञक एवं लोट तन किया जाता है)। प्रत्यय होते हैं। च-III. iv. 20 च-III. III. 166 (सत्कार गम्यमान हो तो) भी (स्म शब्द उपपद रहते (जब पर का अवर के साथ या पर्वका पर के साथ योग धात से लोट प्रत्यय होता है)। गम्यमान हो,तो) भी (धातु से क्त्वा प्रत्यय होता है)। च-III. iii. 169 च-III. iv. 22 (योग्य कर्ता वाच्य हो या गम्यमान हो तो धातु से ___(पौनःपुन्य अर्थ में समानकर्तृक दो धातुओं में जो कृत्यसंज्ञक तथा तृच प्रत्यय हो जाते है) तथा चकार से पूर्वकालिक धातु, उससे णमुल् प्रत्यय होता है),चकार से लिङ् भी होता है। क्त्वा भी होता है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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