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________________ 211 च-III.1.74 च-III. I. 119 (श्रु धातु से श्नु प्रत्यय होता है, कर्तृवाची सार्वधातुक (पद, अस्वैरी, बाह्या, पक्ष्य - अर्थों में) भी (ग्रह धातु परे रहने पर साथ ही श्रु धातु को श्रृ आदेश) भी होता से क्यप् प्रत्यय होता है)। च-III. I. 121 च-III.1.80 (वाहन अभिधेय हो तो युज् धातु से भी क्यप प्रत्यय) (विवि,कृवि धातुओं से उ प्रत्यय) तथा (उनको अकार तथा (जकार को कुत्व युग्य शब्द में निपातन किया जाता अन्तादेश (पी) हो जाता है,कर्तृवाची सार्वधातुक परे रहने है)। पर)। च-III. 1. 126 च-III. 1.82 (आङ्पूर्वक घु, यु,वप, रस, लपत्रप् और चम् - इन धातुओं से) भी (ण्यत् प्रत्यय होता है)। (स्तम्भु, स्तुम्मु, स्कम्मु, स्कुम्भु तथा स्कुञ् धातुओं से । स्न) तथा (श्ना प्रत्यय होते हैं,कर्तवाची सार्वधातक परे च-III. I. 132 रहने पर)। (अग्नि अभिधेय हो तो चित्य तथा अग्निचित्या शब्द) च-III.1.90 भी (निपातन किये जाते हैं)। (कुष और रन धातु को कर्मवद्भाव में श्यन् प्रत्यय) च - III. 1. 136 और (परस्मैपद होता है, प्राचीन आचार्यों के मत में)। (आकारान्त धातुओं से) भी (उपसर्ग उपपद रहते क च-III.1.99 प्रत्यय होता है)। (शक्ल शक्तौ और यह मर्षणे धातुओं से ) भी (यत् . च - III. 1. 138 प्रत्यय होता है)। (उपसर्गरहित लिम्प,विद,धारि,पारि,वेदि,उदेजि,चेति, च-III. 1. 100 साति, और साहि धातुओं से) भी (श प्रत्यय होता है)। (गद,मद,चर,यम्-इन उपसर्गरहित धातुओं से) भी च-III. I. 141 : (यत् प्रत्यय होता है)। (श्यैङ् आ, आकारान्त, व्यद्य, आङ् और सम्पूर्वक स्नु, च-III. 1. 106 अतिपूर्वक इण, अवपूर्वक सा, अवपूर्वक ह, लिह, श्लि, श्वस्-धातुओं से) भी (ण प्रत्यय होता है)। (उपसर्गरहित वद् धातु से सुबन्त उपपद रहते हुए क्यप् च-III. 1. 147 प्रत्यय होता है, तथा) चकार से (यत् भी होता है)। शिल्पी कर्ता वाच्य हो तो गा धातु से युट् प्रत्यय) भी च-III. 1. 108 (होता है)। (अनुपसर्ग हन् धातु से सुबन्त उपपद रहते भाव में च-III. 1. 148 (व्रीहि और काल अभिधेय हो, तो हा धातु से) ण्युट क्या होता है, तथा तकार अन्तादेश) भी (होता है)। प्रत्यय होता है)। च-II. 1. 110 च-III. 1. 150 (ऋकार उपधावाली धातुओं से) भी (क्यप् प्रत्यय होता (आशीर्वाद अर्थ गम्यमान होने पर) भी (धातुमात्र से है,क्लपि और चूति धातुओं को छोड़कर)। वुन् प्रत्यय होता है)। च-III. 1. 111 च-III. 1.2 (खन् धातु से क्यप् प्रत्यय होता है तथा अन्त्य अल् (हेज, वेज् माङ् - इन धातुओं से) भी (कर्म उपपद को ईकारादेश) भी (होता है)। रहते अण् प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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