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________________ च - II. iv. 65 इन (अत्रि, भृगु, कुत्स, वसिष्ठ, गोतम, अङ्गिरस् शब्दों से तत्कृतबहुत्व गोत्रापत्य में विहित जो प्रत्यय, उसका भी (लुक् हो जाता है) । - च - II. iv. 74 (अच् प्रत्यय के परे रहते यङ् का लुक् हो जाता है ;) चकार से बहुल करके अच् परे न हो तो भी लुक् हो जाता है। च - III. 1. 2 ( जिसकी प्रत्ययसंज्ञा नहीं है) वह, जिस (धातु का प्रातिपदिक) से (विधान किया जाये, उससे परे होता है, यह अधिकार भी पञ्चमाध्याय की समाप्तिपर्यन्त जानना चाहिये। च - III. 1. 3 (जिसकी प्रत्ययसंज्ञा कही है, वह आद्युदात्त) भी (होता है)। च - III. 1. 6 (मान्, वध, दान् और शान् धातुओं से सन् प्रत्यय होता है) तथा (अभ्यास के विकार को अर्थात् सन्यतः VII. iv. 79 से इत्त्व करने के पश्चात् दीर्घ आदेश हो जाता है)। च - III. 1. 9 (आत्मसम्बन्धी सुबन्त कर्म से इच्छा अर्थ में विकल्प से काम्यच् प्रत्यय) भी (होता है)। च - III. 1. 11 उपमानवाची (सुबन्त कर्त्ता से आचार अर्थ में क्यङ् प्रत्यय विकल्प से होता है, तथा सकारान्त शब्दों के सकार का लोप) भी (विकल्प से होता है)। च - III. 1. 12 (अच्प्रत्ययान्त भृशादि शब्दों से भू धातु के अर्थ में क्यङ् प्रत्यय होता है, और उन भृशादि में विद्यमान हलन्त शब्दों के हल् का लोप) भी (होता है) । भृश = अधिक । च - III. 1. 26 (हेतुमान् के अभिधेय होने पर) भी (धातु से णिच् प्रत्यय होता है)। 210 च - III. 1. 36 (इजादि तथ गुरुमान् धातु से आम् प्रत्यय होता है, लौकिक विषय में लिट् परे रहते, ऋच्छ् धातु को छोड़ कर) । च - III. 1. 37 (दय, अय तथा आस् धातुओं से भी (अमन्त्रविषयक लिट् लकार परे रहते आम् प्रत्यय हो जाता है)। च - III. 1. 39 (भी, ही, भृ एवं हु धातुओं से अमन्त्रविषयक लिट् परे रहते विकल्प से आम् प्रत्यय होता है) और (इनको श्लुवत् कार्य भी हो जाता 1 च - III. 1. 40 (आम्प्रत्यय के पश्चात् कृञ् प्रत्याहार का ) भी (अनुप्रयोग होता है, लिट् परे रहने पर) । च - III. 1. 53 (लिप, सिच तथा ह्वेञ् धातुओं से) भी (कर्तृवाची लुङ् परे रहने पर चिल के स्थान में अङ् आदेश होता है)। च - III. 1. 56 (सृ, शासु तथा ऋ धातुओं से उत्तर) भी (च्लि के स्थान अङ् . आदेश होता है, कर्तृवाची लुङ् परस्मैपद परे रहते । में च - III. 1. 58 (जूष, स्तम्भु, म्रुचु, म्लुचु, ब्रुचु, ग्लुचु, ग्लुचु तथा श्वि धातुओं से उत्तर चिल के स्थान में) भी (विकल्प से अङ् होता है, कर्तृवाची लुङ् परे रहने पर) । च - III. 1. 63 (दुह धातु से उत्तर) भी (च्लि के स्थान में चिण् आदेश विकल्प से होता है, कर्मकर्त्ता में त के परे रहते) । च - III. 1. 65 (तप् धातु से उत्तर लि के स्थान में चिण् आदेश नहीं होता, कर्मकर्त्ता में) तथा (पश्चात्ताप अर्थ में त के परे रहने पर) । च - III. 1. 72 (सम् पूर्वक यस् धातु से) भी (कर्तृवाची सार्वधातुक परे रहते विकल्प से श्यन् प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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