SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षियः 179 क्षियः-VIII. 1.46 (दीर्घ) क्षि धातु से उत्तर (निष्ठा के तकार को नकारादेश होता है)। क्षिया..-VIII. 1. 104 देखें-क्षियाशी: VIII. II. 104 क्षियायाम् -VIII. 1.60 (ह इससे युक्त प्रथम तिङन्त विभक्ति को) धर्मोल्लंघन गम्यमान होने पर (अनुदात्त नहीं होता)। क्षियाशी प्रेवेषु-VIII. 1. 104 क्षिया= आचारोल्लंघन, आशीः तथा प्रैष = शाब्दप्रेरणा गम्यमान हो तो (साकाङ्क्ष तिङन्त की टि को स्वरित प्लुत होता है)। ... श्रीब... - VIII. 1.55 देखें-फुल्लक्षीय VIII. 1.55 ...धीर... -VII.1.51 देखें- अश्ववीर० VII.1.51 धीरात् - TV.1.19 (सप्तमीसमर्थ) क्षीर प्रातिपदिक से (संस्कृतं भक्षाः' अर्थ में ठञ् प्रत्यय होता है)। ६... - III. II. 25 देखें-शुश्रुव III. III. 25 शुद्रजन्तवः -II. N. क्षुद्रजन्तु = नेवले से लेकर सूक्ष्म जीव,तद्वाची शब्दों का (द्वन्द एकवद् होता है)। क्षुद्रा...-IN. III. 118 देखें- खुद्राप्रमरक्टर० N. I. 118 शुद्राप्रमरक्टरपादपात् - IV. III. 118 (तृतीयासमर्थ) क्षुद्रा, अमर, वटर, पादप प्रातिपदिकों से (कृते' अर्थ में संज्ञाविषय गम्यमान होने पर अञ् प्रत्यय होता है)। क्षुद्रा = छोटी मक्खी वटर = पामार, शठ ..बुद्राणाम् -VI. iv. 156 देखें- स्थूलदूर० VI. iv. 156 क्षुद्राभ्यः - IV.i. 131 क्षुद्रावाची प्रकृतियों से (अपत्य अर्थ में विकल्प से क् प्रत्यय होता है)। ...क्षुधोः - VII. ii. 52 देखें - वसतिक्षुधो: VII. ii. 52 क्षुब्ध..-VII. . 18 देखें - क्षुब्धस्वान्तः VII. ii. 18 बुमादिषु - VII. iv. 38 क्षुम्नादिगण में पठित शब्दों के (नकार को भी णकारादेश नहीं होता)। क्षुब्धस्वान्तध्वान्तलग्नम्लिष्टविरिब्धफाण्टबाढानि - VII. ii. 18 क्षुब्ध,स्वान्त, ध्वान्त, लग्न,म्लिष्ट,विरिब्ध, फाण्ट,बाढ - ये शब्द (निष्ठा परे रहते यथासङ्ख्य करके मन्थ, मनस. तमस, शक्त, अविस्पष्ट,स्वर, अनायास, भृशइन अर्थों में निपातन किये जाते है)। क्षुल्लक:-VI. ii. 31 (वैश्वदेव शब्द उत्तरपद रहते पूर्वपदस्थित) क्षुल्लक शब्द (तथा महान् शब्द को प्रकृतिस्वर होता है)। क्षुल्लक = छोटा, क्षुद्र खुश्रुक -III. iii. 25 विपूर्वक) क्षु तथा श्र धातुओं से ( कर्तभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। ...क्षेत्र..-III. ii. 21 देखें-दिवाविभा० III. ii. 21 ...क्षेत्रज्ञ..- VII. iii. 30 देखें- शुचीश्वर० VII. i. 30 क्षेत्रियच् - V.ii. 92 'क्षेत्रियच्' शब्द को निपातन किया जाता है, (दूसरे शरीर में चिकित्सा किये जाने योग्य' अर्थ में)। क्षेत्रे -N.i:23 (काण्डशब्दान्त अनुपसर्जन द्विगुसंज्ञक प्रातिपदिक से तद्धित का लुक हो जाने पर स्त्रीलिङ्ग में) क्षेत्र वाच्य होने पर (डीप् प्रत्यय नहीं होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy