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________________ क्विम् 178 शियः । क्विप् - II. I. 87 (ब्रह्म, भ्रूण और वृत्र - ये ही कर्म उपपद रहते 'हन्' धातु से भूतकाल में) क्विप् प्रत्यय होता है। क्विप् -III. I. 166 (प्राजू, भास, धुर्वी, ऊर्ज, ,जु, पावपूर्वक ष्टुव-इन धातुओं से तच्छीलादि कर्ता हो तो वर्तमानकाल में)क्विप् प्रत्यय होता है। ...क्विपु-VI. iv.97 देखें-इस्मन् VI. iv.97 क्वे:-III. 1. 138 (प्राजभास. III. ii. 166 इस सूत्र से विहित) क्विप् प्रत्यय (पर्यन्त जितने प्रत्यय कहे हैं; वे सब तच्छील, तद्धर्म तथा तत्साधुकारी कर्ता अर्थों में जानने चाहिए)। क्वौ-VI. iii. 115 (नहि, वृति, वृषि,व्यधि,रुचि,सहि, तनि-इन) क्विणत्ययान्त शब्दों के उत्तरपद रहते (पूर्व अण् को दीर्घ हो जाता है)। क्वौ-VI.iv.40 क्वि के परे रहते (गम् के अनुनासिक का लोप होता क्षत्रियात् - IV.I. 166 (जनपद को कहने वाले) क्षत्रिय अभिधायक प्रातिपदिक से (अपत्य अर्थ में अञ् प्रत्यय होता है)। क्षमिति - VII. ii. 34 क्षमिति शब्द (वेदविषय में) इडागमयुक्त निपातित है। क्षयः -VI.1. 195 क्षय शब्द (आधुदात्त होता है, निवास अभिधेय होने पर)। अय्य... - VI.1.78 देखें-क्षय्यजय्यौ VI.i.78 क्षय्यजय्यौ -VI. I. 78 क्षय्य और जय्य शब्द निपातन किये जाते हैं, (शक्य . अर्थ में)। ...र..- VI. iii. 15 - देखें - वर्षक्षरशरवरात् VI. iii. 15 . क्षरिति - VII. II. 34 क्षरिति शब्द वेदविषय में इडागमयुक्त निपातित है। क्षायः - VIII. ii. 53 क्षे धातु से उत्तर (निष्ठा के तकार को मकारादेश होता क्वो -VIII. iii. 25 सम् के मकार को मकारादेश होता है,क्विप् प्रत्ययान्त राजू धातु के परे रहते। ... क्षण.. - II. 1.5 देखें- हम्यन्तक्षण VII. ii. 5 ...त...- VI. iv. 11 देखें - अप्तृन्तच्० VI. iv. 11 क्षत्रात् - IV. 1. 138 क्षत्र शब्द से (अपत्य अर्थ में घ प्रत्यय होता है)। ...क्षत्रिय.. -II. iv. 58 देखें - ण्यक्षत्रियाजितः II. iv.58 ...क्षत्रियाख्येभ्यः- IV. il. 99 देखें-गोत्रक्षत्रियाख्येभ्यः IV. 1.99 ...क्षि..-III. ii. 157 देखें - जिदृक्षि० III. ii. 157 क्षिपः-I.ii. 80 (अभि,प्रति तथा अति पूर्वक) क्षिप्' धातु से (परस्मैपद होता है)। ...क्षिः -III. 1. 140 देखें-त्रसिधिo III. ii. 140 ...क्षिप्र..-VI.iv. 156 . देखें- स्थूलदूर० VI. iv. 156 क्षिप्रवचने - III. iii. 133 शीघ्रवाची शब्द उपपद हो तो (आशंसा गम्यमान होने पर धातु से लृट् प्रत्यय होता है)। क्षियः - VI. iv.59 _ 'क्षि क्षये' अथवा 'क्षि निवासगत्योः धातु को (दीर्घ होता है, ल्यप् परे रहते)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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