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________________ 180 क्षेत्रे -v.1.1 बहुव्रीहि समास में सज्ञाविषय में पूर्वपद को अन्तोदात्त (षष्ठीसमर्थ धान्यविशेषवाची प्रातिपदिकों से उत्पत्ति- होता है)। स्थान' अभिधेय हो तो खञ् प्रत्यय होता है), यदि वह ... क्षेपेषु - V. iv. 46 (उत्पत्तिस्थान) खेत हो तो। देखें- अतिग्रहाव्यथन० V.iv.46 क्षेपे-II. I. 25 क्षेम..-III. ii. 44 निन्दा गम्यमान होने पर (क्तान्त समर्थ सबन्त के साथ देखें - क्षेमप्रियमद्रे III. I. 44 द्वितीयान्त खट्वा सुबन्त का समास होता है, और वह समास तत्पुरुषसंज्ञक होता है)। क्षेमप्रियमद्रे - III. II. 44. क्षेपे-II.1.41 क्षेम, प्रिय, मद्र -इन (कर्मो) के उपपद रहते (कृज् धातु (समस्त पद से) निन्दा गम्यमान होने पर (ध्वाङ्क्ष = से अण् प्रत्यय होता है,तथा चकार से खच् भी होता है)। काकवाची समर्थ सुबन्त के साथ सप्तम्यन्त सुबन्त का क्ष्णुव....-I. iii. 65 विकल्प से समास होता है, और वह तत्पुरुष समास होता (सम् उपसर्ग से उत्तर) 'दणु तेजने' धातु से (आत्मनेपद . होता है)। क्षेपे-II.1.46 ... मायी... - VII. iii. 36 . निन्दा गम्यमान होने पर (सप्तम्यन्त सुबन्त का क्तान्त देखें - अर्तिही. VII. iii. 36 समर्थ सुबन्त के साथ तत्पुरुष समास होता है)। . ...शिवदि...-1. 1. 19 क्षेपे-II.1.63 देखें - शीविदिमिदिदिवदिषषः I. 1. 19 .. निन्दा गम्यमान होने पर (किम्' शब्द का समानाधिक क्स: -III. . 45 रण समर्थ के साथ विकल्प से समास होता है, और वह समास तत्पुरुषसंज्ञक होता है)। (शलन्त और इगुपध जो अनिट् धातु, उससे लुङ् परे क्षेपे-v.iv.70 रहते च्लि के स्थान में ) क्स आदेश होता है। 'निन्दा' अर्थ में वर्तमान (किम् प्रातिपदिक से समासान्त क्सस्य - VII. ii. 71 प्रत्यय नहीं होते)। क्स का (अजादि प्रत्यय परे रहते लोप होता है)। क्षेपे-VI. 1.69 ...क्से... - III. iv.9 निन्दावाची समास में (गोत्रवाची, अन्तेवासिवाची तथा देखें - सेसेनसे० III. iv.9 माणव एवं ब्राह्मण शब्दों के उत्तरपद रहते पूर्वपद को वस्तुः - III. ii. 139 . आधुदात्त होता है)। (ग्ला, जि, स्था तथा चकार से भू धातु से भी) क्स्नु क्षेपे-VI. 1. 108 प्रत्यय (वर्तमानकाल में होता है.तच्छीलादि कर्ता हो तो)। निन्दा गम्यमान होने पर (उदर, अश्व, इषु उत्तरपद रहते क्स्नु में गकार चर्वभूत निर्दिष्ट है। ख-प्रत्याहारसूत्र XI . भगवान् पाणिनि द्वारा अपने ग्यारहवें प्रत्याहारसूत्र में पठित प्रथम वर्ण। पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का तीसवाँ वर्ण। ख-IV.iv. 132 (वेशस्,यशस् आदि वाले भगान्त प्रातिपदिक से मत्वर्थ में) ख प्रत्यय (भी) होता है, (वेद-विषय में)। ख-V.1.91 (द्वितीयासमर्थ सम् तथा परि पूर्व वाले वत्सर शब्दान्त
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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