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________________ 172 क्तेन-II. 1.24 क्वा -1.1.22 .(स्वयम्-इस अवयव का) क्तप्रत्ययान्त (समर्थ सुबन्त) ( पधातु से परे सेट निष्ठा तथा सेट) क्त्वा प्रत्यय (भी के साथ विकल्प से समास होता है और वह समास कित नहीं होता है)। तत्पुरुषसंज्ञक होता है)। क्वा -II. 1. 22 क्तेन -II. . 38 क्त्वा-प्रत्ययान्त के साथ (भी तृतीयाप्रभृति उपपद (स्तोक, अन्तिक और दूर अर्थ वाले पञ्चम्यन्त सुबन्त, विकल्प से समास को प्राप्त होते हैं, और वह तत्पुरुष तथा पञ्चम्यन्त कृच्छू शब्द जो सुबन्त, उनका समर्थ) समास होता है)। क्तान्त (सुबन्त) के साथ (विकल्प से समास होता है, और क्वा -III. iv. 18 वह तत्पुरुषसंज्ञक होता है)। प्रतिषेधवाची अलं तथा खल शब्द उपपद रहते प्राचीन क्तेन-II.1.44 आचार्यों के मत में धातु से) क्त्वा प्रत्यय होता है। (दिन के अवयववाची और रात्रि के अवयववाची सप्त- क्वा ..-III. IN.59 म्यन्त सुबन्तों का) क्तान्त (समर्थ सुबन्त) के साथ (विकल्प देखें-क्वाणमुलौ III. iv.59 से तत्पुरुष समास होता है)। क्वा -VII.1.38 क्तेन -II. 1.59 (अनपूर्व वाले समास में क्त्वा के स्थान में) क्त्वा . (अनञ् क्तान्त सुबन्त शब्द नज्-विशिष्ट = जिस शब्द आदेश होता है (तथा ल्यप आदेश भी वेद-विषय में होता । में न ही विशेष हो अन्य सब प्रकृति प्रत्यय आदि द्वितीयपद के तुल्य हों) समानाधिकरण तान्त (सुबन्त) क्वा ..-VII. 1.50 के साथ विकल्प से तत्पुरुष समास को प्राप्त होता है)। देखें- क्वानिष्ठयोः VII. ii. 50 क्तेन-II. 1. 12 क्वाणमुलौ-III. 1.59 , (पूजा अर्थ में विहित) जो क्त प्रत्यय, तदन्त शब्द के साथ (भी षष्ठ्यन्त सुबन्त समास को प्राप्त नहीं होता। (इष्ट का कथन जैसा होना चाहिये वैसा न होना गम्य...क्तौ-III. iii. 174 मान हो तो अव्यय शब्द उपपद रहते कृञ् धातु से) क्त्वा देखें-क्तिच्चतौ III. 1. 174 और णमुल प्रत्यय होते हैं। . क्यः - VII.i.37 कत्वातोसुकसुनः - I. 1. 39 . (नज से भिन्न पूर्व अवयव है जिसमें, ऐसे समास में) क्त्वान्त, तोसुन्नन्त और कसुन्नन्त शब्द (अव्ययसंज्ञक क्त्वा के स्थान में (ल्यप् आदेश होता है)। होते हैं)। क्य-VII. I. 47 क्वानिष्ठयोः - VII. ii. 50 (वेद-विषय में) क्त्वा को (या आगम होता है)। (क्लिश् धातु से उत्तर) क्त्वा तथा निष्ठा को (इट् आगम क्वा .. -I.i.39 विकल्प से होता है)। देखें- क्त्वातोसुन्कसुनः I. 1. 39. वित्व-VI. iv. 18 क्त्वा -I. ii.7 (क्रम् अङ्ग की उपधा को भी झलादि) क्त्वा प्रत्यय परे (मृड,मृद,गुध,कुष, क्लिश, वद,वस-इन धातुओं से रहते (विकल्प से दीर्घ होता है)। परे) क्त्वा प्रत्यय (किद्वत् होता है)। वित्व-VI.N.31 क्वा -I. 1. 18 (स्कन्द तथा स्यन्द के नकार का लोप) क्त्वा प्रत्यय परे (सेट) क्त्वा प्रत्यय (कित् नहीं होता है)। रहते (नहीं होता।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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