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________________ वित्व 173 वित्व-VII. 1. 55 क्य च् -III. 1.8 (जू वयोहानौ' तथा 'ओवश्चू छेदने' धातु के) क्त्वा (इच्छा क्रिया का कर्म जो कर्ता का आत्मसम्बन्धी प्रत्यय को (इट् आगम होता है)। सुबन्त, उससे इच्छा अर्थ में विकल्प से) क्यच् प्रत्यय वित्व - VII. iv. 43 होता है)। (ओहाक् त्यागे' अङ्ग को भी) क्त्वा प्रत्यय परे रहते क्यच् -III.i. 19 (हि आदेश होता है)। (करोति के अर्थ में नमस्,वरिवस् और चित्रङ् कर्मों से) किर-III. iii. 88 क्यच् प्रत्यय होता है। (डु इत्संज्ञक है जिन धातुओं का,उनसे कर्तृभिन्न कारक क्यचि - VII. I. 51 संज्ञा तथा भाव में) किन प्रत्यय होता है। (अश्व, क्षीर, वृष, लवण-इन अङ्गों को) क्यच् परे को-IV. iv. 20 रहते (आत्मा की प्रीति विषय में असुक् आगम होता है)। (तृतीयासमर्थ) क्त्रि प्रत्ययान्त प्रातिपदिक से निर्वत्त क्यचि-VII. iv.33 अर्थ में नित्य ही मप प्रत्यय होता है)। क्यच् परे रहते (भी अवर्णान्त अङ्ग को ईकारादेश होता क्नु: -III. ii. 139 (तसि, गृधि,षि तथा क्षिप् धातुओं से तच्छीलादि कर्ता क्यच्च्यो : - VI. iv. 152 हो, तो वर्तमानकाल में) क्नु प्रत्यय होता है। (हल से उत्तर अङ्ग के अपत्य-सम्बन्धी यकार का) क्य ....क्नूयी... VII. il. 36 तथा चि परे रहते (भी लोप होता है)। देखें- अर्तिही०- VII. il. 36 क्यप् -III. I. 106 क्नोपे: -III. iv. 33 • (उपसर्गरहित वद् धातु से सुबन्त उपपद रहते) क्यप् (चेलवाची कर्म उपपद हो तो वर्षा का प्रमाण गम्यमान प्रत्यय होता है, (चकार से यत् प्रत्यय भी होता है)। होने पर) ण्यन्त नूयी धातु से (णमुल् प्रत्यय होता है)। क्यप् - III. 1. 109 क्मरच् - III. ii. 160 (इण,ष्टुञ्, शासु, वृज,दृङ् और जुषी धातुओं से) क्यप् (स, घसि, अद्- इन धातुओं से तच्छीलादि कर्ता हो, प्रत्यय होता है। तो वर्तमानकाल में) क्मरच प्रत्यय होता है। क्यप् -III. iii. 98 क्यङ्-III. I. 11 (वज तथा यज् धातुओं से स्त्रीलिङ्गभाव में) क्यप् प्रत्यय (उपमानवाची सुबन्त कर्ता से आचार अर्थ में विकल्प होता है,(और वह उदात्त होता है)। से) क्यङ् प्रत्यय होता है,(तथा विकल्प से सकार का क्यष् -III. 1. 13 लोप भी हो जाता है)। (अळ्यन्त लोहितादि तथा डाच् प्रत्ययान्त शब्दों से क्या .. - VI. iii. 35 'भवति' अर्थ में) क्यष् प्रत्यय होता है । देखें-क्यङ्मानिनो: VI. iil. 35 क्यपः -1. iii.90 क्यङ्मानिनोः - VI. ill. 35 क्यष्-प्रत्ययान्त धातु से (परस्मैपद होता है, विकल्प क्यङ् तथा मानिन् परे रहते (भी अवर्जित भाषितपुंस्क करके)। स्त्रीशब्द को पुंवद्भाव हो जाता है)। क्यस्य -VI. iv. 50 क्य.. -VI. iv. 152 (हल् से उत्तर) 'क्य' का विकल्प से लोप होता है, देखें-क्यच्व्योः VI. iv. 152 आर्धधातुक परे रहते)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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