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________________ विकृति 171 विडति-VI. iv.98 (गम,हन,जन,खन, घस्- इन अङ्गों की उपधा का लोप हो जाता है, अङ्वर्जित अजादि) कित्,डित् प्रत्यय परे हो तो। विडति - VII. iv. 22 (यकारादि) कित् डित् प्रत्यय परे रहते (शीङ अङ्ग को 'अयङ् आदेश होता है)। क्त... -I.1.25 देखें- क्तवतवतू I. i. 25 ...क्त... -III. iv.70 देखें-कृत्यक्तखलाः III. iv. 70 ...क्त ... VI. ii. 144 देखें-थाथप VI. ii. 144 क्तः -III. II. 186 (जि जिसका इत्संज्ञक है,ऐसी धातु से वर्तमानकाल में) क्त प्रत्यय होता है। क्तः -III. iii. 114 (नपुंसकलिङ्ग भाव में धातुमात्र से) क्त प्रत्यय होता है। क्त -III. iv. 71 (क्रिया के आरम्भ के आदि क्षण में विहित जो) क्त प्रत्यय. (वह कर्ता तथा चकार से भावकर्म में भी होता ...क्तवतू -I.i. 25 देखें-क्तक्तवतू I.i. 25 क्तक्तवतू -I.i. 25 क्त और क्तवतु प्रत्यय (निष्ठासंज्ञक होते है)। क्तस्य-II. iii.67 'क्त' प्रत्यय के (योग में भी षष्ठी विभक्ति होती है, उसके वर्तमानकाल में विहित होने पर)। क्तात् - IV.i.51 (करणपूर्व अनुपसर्जन) क्तान्त प्रातिपदिक से (थोडे की आख्या गम्यमान हो तो स्त्रीलिङ्ग में ङीष् प्रत्यय होता है)। क्तात् - V.iv.4 क्तप्रत्यय अन्त वाले प्रातिपदिकों से (निरन्तर सम्बन्ध गम्यमान न हो तो कन् प्रत्यय होता है)। क्तिच्... - III. ii. 174 देखें-क्तिच्क्तौ III. iii. 174 क्तिचि - VI. iv. 39 क्तिच परे रहते (अनुदात्तोपदेश, वनति तथा तनोति आदि अङगों के अनुनासिक का लोप तथा दीर्घ नहीं होता है)। क्तिचि-VI. iv. 45 क्तिच प्रत्यय परे रहते (सन् अङ्ग को आकारादेश होता है तथा विकल्प से इसका लोप भी होता है)। क्तिच्चतौ -III. iii. 174 (आशीर्वाद विषय में धातु से) क्तिच् और क्त प्रत्यय (भी) होते हैं,(यदि समुदाय से संज्ञा प्रतीत हो तो)। क्तिन् -III. iii. 94 (धातुमात्र से स्त्रीलिङ्ग में कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में) क्तिन् प्रत्यय होता है। ...क्तिन्... - VI. ii. 151 देखें- मन्क्तिन VI. ii. 151 क्ते-VI. ii. 45 क्तान्त शब्द उत्तरपद रहते (भी चतुर्थ्यन्त पूर्वपद को प्रकृतिस्वर हो जाता है) क्ते-VI. 1. 61 क्तान्त उत्तरपद रहते (नित्य अर्थ है जिसका,ऐसे समास में विकल्प से पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है)। क्तः -III. iv.76 (स्थित्यर्थक अकर्मक. गत्यर्थक तथा प्रत्यवसानार्थक धातुओं से विहित) जो क्त प्रत्यय,वह (अधिकरण कारक में होता है तथा चकार से भाव, कर्म और कर्ता में भी होता है)। क्तः-VI. ii. 145 (सु तथा उपमानवाची से उत्तर) क्तान्त उत्तरपद को (अन्तोदात्त होता है)। क्त - VI. ii. 170 (आच्छादनवाची शब्द को छोडकर जो जातिवाची कालवाची एवं सुखादि शब्द,उनसे उत्तर उत्तरपद)क्तान्त शब्द को (कृत, मित तथा प्रतिपन्न शब्दों को छोड़कर अन्तोदात्त होता है, बहुव्रीहि समास में)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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