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________________ कर्मणि कर्मणि - V. 1. 123 (षष्ठीसमर्थ गुणवचन ब्राह्मणादि प्रातिपदिकों से) कर्म के अभिधेय होने पर (तथा भाव में ष्यञ् प्रत्यय होता है)। कर्मणि - V. ii. 35 सप्तमीसमर्थ कर्मन् प्रातिपदिक से (चेष्टा करनेवाला' अर्थ में अठच् प्रत्यय होता है) । कर्मणि - VI. ii. 48 कर्मवाची ( क्तान्त) उत्तरपद रहते (तृतीयान्त पूर्वपद को प्रकृतिस्वर हो जाता हैं) । ... कर्मणी - IV. iv. 120 देखें - भागकर्मणी IV. iv. 120 ... कर्मणोः - I. iii. 13 देखें - भावकर्मणोः I. iii. 13 ... कर्मणोः - II. iii. 65 देखें - कर्तृकर्मणोः II. iii. 65 ...quit: - III. i. 66 देखें भावकर्मणोः III. 1. 66 .....कर्मणोः - III. iii. 127 देखें - कर्तृकर्मणोः III. iii. 127 - ... कर्मणोः - VI. iv. 62 देखें - भावकर्मणोः VI. iv. 62 151 ... कर्मणोः - VI. iv. 168 देखें - अभावकर्मणोः VI. iv. 168 कर्मधारय... - VI. iii. 41 देखें - कर्मधारयजातीयo VI. iii. 41 कर्मधारयः . - I. ii. 42 (समान है अधिकरण जिनका, ऐसे पदों वाले तत्पुरुष की) कर्मधारय संज्ञा होती है । कर्मधारयजातीयदेशीयेषु - VI. iii. 41 कर्मधारय समास में तथा जातीय एवं देशीय प्रत्ययों परे रहते (वर्जित भाषितपुंस्क स्त्रीशब्द को पुंवद्भाव हो जाता है)। कर्मधारयवत् - VIII. 1. 11 (यहाँ से आगे द्विर्वचन करने में) कर्मधारय समास के समान कार्य होते है, (ऐसा जानना चाहिये) । कर्मधारये - II. ii. 38 कर्मधारय समास में (कडारादियों का पूर्व प्रयोग विकल्प से होता है)। कर्मव्यतिहारे कर्मधारये - VI. ii. 25 (श्र, ज्य, अवम, कन् तथा पापवान् शब्द के उत्तरपद रहते) कर्मधारय समास में (भाववाची पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है)। कर्मधारये - VI. ii. 46 (क्तान्त शब्द उत्तरपद रहते) कर्मधारय समास में (अनिष्ठान्त पूर्वपद को प्रकृतिस्वर हो जाता है)। कर्मधारये -VI. ii. 57 (कतर तथा कतम पूर्वपद को) कर्मधारय समास में ( विकल्प से प्रकृति-स्वर होता है) । कर्मन्द... - IV. iii. 111 देखें - कर्मन्दकृशाश्वात् IV. lii. 111 कर्मन्दकृशाश्वात् - IV. iii. 111 (तृतीयासमर्थ) कर्मन्द तथा कृशाश्व प्रातिपदिकों से ( यथासङ्ख्य भिक्षुसूत्र तथा नटसूत्र का प्रोक्त विषय अभिधेय हो तो इनि प्रत्यय होता है)। कर्मप्रवचनीययुक्ते - II. iii. 8 कर्मप्रवचनीय संज्ञक शब्दों के योग में (द्वितीया विभक्ति होती है) । कर्मप्रवचनीयाः - I. iv. 82 यह अधिकार है, आगे I. iv. 96 तक कर्मप्रवचनीय संज्ञा का विधान किया जायेगा । ... कर्मवचनः - VI. ii. 150 देखें - भावकर्मवचनः VI. ii. 150 कर्मवत् - III. 1. 87 (जिस कर्म के कर्ता हो जाने पर भी क्रिया वैसी ही लक्षित हो, जैसी कर्मावस्था में थी, उस कर्म के साथ तुल्य क्रिया वाले कर्ता को) कर्मवद्भाव होता है। कर्मवेषात् - V. 1. 99 (तृतीयासमर्थ) कर्मन् तथा वेष प्रातिपदिकों से (शोभित किया' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है) । कर्मव्यतिहारे -I. iii. 18 कर्मव्यतिहार = क्रिया के अदल बदल करने अर्थ में (धातु से आत्मनेपद होता है)। कर्मव्यतिहारे - III. iii. 43 1 क्रिया का अदल बदल गम्यमान हो तो (स्त्रीलिंग में धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञाविषय तथा भाव में णच् प्रत्यय होता है) "
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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