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________________ कर्मणा । 150 कर्मणि कर्मणा -I. iv. 32 (करणभूत) कर्म के द्वारा (जिसको अभिप्रेत किया जाये. वह कारक सम्प्रदान संज्ञक होता है)। . कर्मणा-III.i. 87 कर्मस्थ क्रिया से (तुल्य क्रिया वाला कर्ता कर्मवत हो जाता है)। कर्मणि -I. iii. 37 (कर्ता में स्थित शरीर-भित्र) कर्म के होने पर (भी णीब् धातु से आत्मनेपद होता है)। कर्मणि - II. ii. 14 कर्म कारक में (विहित जो षष्ठी, वह भी समर्थ सुबन्त के साथ समास को प्राप्त नहीं होती)। कर्मणि -II. iii.2 (अनभिहित) कर्म कारक में (द्वितीया विभक्ति होती है)। कर्मणि -II. iii. 14 (क्रियार्थ क्रिया उपपद में है जिस धातु के,उस अप्रयुज्यमान धातु के अनभिहित) कर्म कारक में (चतुर्थी विभक्ति होती है)। कर्मणि-II. iii. 22 (सम् पूर्वक ज्ञा धातु के अनभिहित) कर्मकारक में । (विकल्प से तृतीया विभक्ति होती है)। कर्मणि-II. iii. 52 (स्मरण अर्थवाली धातु, दय् तथा ईश् धातु के) कर्म कारक में (शेष षष्ठी विभक्ति होती है)। कर्मणि -II. iii. 66 (जहाँ कर्ता और कर्म दोनों में षष्ठी की प्राप्ति हो, वहाँ) कर्म कारक में (ही षष्ठी विभक्ति होती है)। कर्मणि-III. 1.1 कर्म उपपद रहते (धातु मात्र से अण् प्रत्यय होता है)। कर्मणि-III. ii. 22 कर्म शब्द उपपद रहते (कृ' धातु से 'ट' प्रत्यय होता है, भृति = वेतन गम्यमान होने पर)। कर्मणि-III. ii. 86 कर्म उपपद रहते (हन्' धातु से भूतकाल में 'णिनि' प्रत्यय होता है)। कर्मणि-III. ii. 92 कर्म उपपद रहते (कर्म कारक के अभिधानार्थ ही 'चित्र' धातु से भी क्विप् प्रत्यय होता है, अग्नि की आख्या अभिधेय हो तो)। कर्मणि - III. ii. 93 कर्मत्वविशिष्ट सुबन्त के उपपद होने पर (विपूर्वक क्री धातु से इनि प्रत्यय होता है)। कर्मणि -III. ii. 100 कर्म उपपद रहते (अनु पूर्वक जन् धातु से 'ड' प्रत्यय होता है, भूतकाल में)। कर्मणि-III. iii. 12 (क्रियार्थ क्रिया और) कर्म उपपद रहने पर (धातु से . . भविष्यत्काल में अण् प्रत्यय होता है)। . . कर्मणि-III. iii. 93 कर्म उपपद रहने पर (अधिकरण कारक में भी घु-संज्ञक धातुओं से कि प्रत्यय होता है)। कर्मणि - III. I. 116 (जिस कर्म के संस्पर्श से कर्ता को शरीर का सुख उत्पन्न हो. ऐसे) कर्म के उपपद रहते (भी धातु से ल्युट प्रत्यय होता है)। कर्मणि - III. I. 189 (धा धातु से) कर्मकारक में (ष्ट्रन् प्रत्यय होता है,वर्तमान काल में)। ॥ कर्म उपपद रहते (आक्रोश गम्यमान हो तो समानकर्तृक पूर्वकालिक कृञ् धातु से खमुञ् प्रत्यय होता है)। कर्मणि - III. iv. 29 (सम्पूर्णताविशिष्ट) कर्म उपपद हो तो (दशिर तथा विद् धातुओं से णमुल् प्रत्यय होता है)। " कर्मणि-III. iv. 45 (उपमानवाची) कर्म उपपद रहते (और कर्ता भी उपपद रहते धातुमात्र से णमुल् प्रत्यय होता है)। कर्मणि-III. iv. 69 (सकर्मक धातुओं से लकार) कर्म कारक में (होते हैं, चकार से कर्ता में भी होते है और अकर्मक धातुओं से भाव में होते हैं तथा चकार से कर्ता में भी होते है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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