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________________ उपसर्गप्रादुर्थ्याम् 122 उपसमें होता है)। उपसर्गव्यपेतम् - VIII. 1. 38 उपसर्गात् - VII. iv. 47 (यावत् और यथा से युक्त एवं) उपसर्ग से व्यवहित (अजन्त) उपसर्ग से उत्तर (घुसज्जक 'दा' अङ्गको तका(तिङन्त को भी पूजाविषय में अननुदात्त नहीं होता,अर्थात् रादि कित् प्रत्यय परे रहते तकारादेश होता है)। अनुदात्त होता है)। उपसर्गात् - VIII. iii. 65 उपसर्गस्य-VI. iii. 121 उपसर्गस्थ निमित्त से उत्तर(सुनोति.सुवति,स्यति.स्तौति. स्तोभति,स्था,सेनय,सेध,सिच,सञ्ज,स्वा- इनके (सकार त उत्तरपद रहत) उपसर्ग क (अण् का बहुल करक को मूर्धन्यादेश होता है)। दीर्घ होता है, अमनुष्य अभिधेय होने पर)। ) उपसर्गात् - VIII. iv. 14 . उपसर्गस्य - VIII. ii. 19 उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर (णकार उपदेश में है • (अय धातु के परे रहते) उपसर्ग के रेफ को लकारादेश जिसके, ऐसे धातु के नकार को असमास में तथा अपि ग्रहण से समास में भी णकार आदेश होता है)। उपसर्गाः -I. iv. 58 उपसर्गात् - VIII. iv. 27 (प्रादिगणपठित शब्द निपातसंज्ञक होते है तथा क्रिया उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर (जो आकार से परे नहीं । के साथ प्रयुक्त होने पर वे) उपसर्गसंज्ञक होते है। है, ऐसे नस् के नकार को णकारादेश होता है)। उपसर्गात् - V.I. 116 उपसर्गे-II. iii. 59 . (धातु के अर्थ में वर्तमान) उपसर्ग से (स्वार्थ में वति। उपसर्ग होने पर (दिव धात के कर्म कारक में षष्ठी प्रत्यय होता है, वेद-विषय में)। विभक्ति होती है)। उपसर्गात् -V.iv.85 उपसर्गे-III. I. 136 उपसर्ग से उत्तर (अध्वन् शब्दान्त प्रातिपदिक से समा- उपसर्ग उपपद रहते (आकारान्त धातुओं से भी 'क' सान्त अच् प्रत्यय होता है)। प्रत्यय होता है)। उपसर्गात् - V. iv. 119 उपसर्गे -III. ii. 61 उपसर्ग से उत्तर(भी नासिका-शब्दान्त बहुव्रीहि से समा- (सत्, सू, द्विष, द्रुह, दुह, युज, विद,भिद, छिद,जि,नी, सान्त अच् प्रत्यय होता है,तथा नासिका को नस आदेश राज,धातुओं से),वे उपसर्गयुक्त हों तो (भी तथा निरुपसर्ग भी हो जाता है)। हों तो भी सुबन्त उपपद रहते क्विप् प्रत्यय होता है)। उपसर्गात् - VI.i. 88 उपसर्गे-III. ii.99 (अवर्णान्त) उपसर्ग से उत्तर (ऋकारादि धातु के परे रहते उपसर्ग उपपद रहते (भी संज्ञा विषय में जन् धातु से पूर्व पर के स्थान में वद्धि एकादेश होता है.संहिता विषय 'ड' प्रत्यय होता है, भूतकाल में)। उपसर्गे-III. ii. 186 उपसर्गात् - VI. ii. 177 उपसर्गसहित (दिव् तथा क्रुश् धातुओं से भी तच्छीलादि (बहुव्रीहि समास में) उपसर्ग से उत्तर (पर्श-वर्जित धूव । कर्ता हो,तो वर्तमान काल में वुञ् प्रत्यय होता है)। स्वाङ्गको अन्तोदात्त होता है)। उपसर्गे -III. iii. 22 . पशु = पसली की हड्डी। उपसर्ग उपपद रहने पर (रु धातु से घञ् प्रत्यय होता है, कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में)। उपसर्गात् - VII. I. 67 उपसर्गे-III. iii. 59 (खल् तथा घञ् प्रत्ययों के परे रहते) उपसर्ग से उत्तर उपसर्ग उपपद रहते हुए (अद् धातु से अप् प्रत्यय होता (लभ् अङ्ग को नुम् आगम होता है)। है,कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में)। उपसर्गात् - VII. iv. 23 उपसर्गे-III. iii. 92 उपसर्ग से उत्तर (ऊह वितर्के' अङ्गको यकारादि कित्, उपसर्ग उपपद रहने पर (घसंज्ञक धातुओं से कतभिन्न ङित् प्रत्यय परे रहते हस्व होता है)। कारक संज्ञा तथा भाव में कि प्रत्यय होता है)। में)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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