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________________ उपमाने 121 उपसर्गप्रादुर्थ्याम् उपमाने -VI. 1.72 (गो, बिडाल, सिंह,सैन्धव-इन) उपमानवाची शब्दों के उत्तरपद रहते (पूर्वपद को आधुदात्त होता है)। ....उपमाभ्याम् -II. iii.72 देखें- अतुलोपमाभ्याम् II. 1.72 उपमार्थे -VIII. 1. 101 (चित- यह निपात भी जब) उपमा के अर्थ में प्रयुक्त हो,तो वाक्य की टि को अनुदात्त प्लत होता है)। उपमितम् -II.1.55 उपमित= उपमेयवाची (सुबन्त) शब्द (समानाधिकरण व्याघ्रादि सुबम्त शब्दों के साथ विकल्प से तत्पुरुष समास को प्राप्त होता है, साधारणधर्मवाची शब्द के अप्रयोग होने पर)। उपयमने-I. ii. 16 उपयमन =विवाह करने अर्थ में वर्तमान (यम् धातु से परे सिच कितवत् होता है.आत्मनेपद विषय में)। उपयमने - I. iv.76 (हस्ते तथा पाणौ शब्द) उपयमन= विवाह विषय में हों तो (नित्य ही उनकी कृयु के योग में गति और निपात संज्ञा होती है)। ...उपयो: -III. iii. 39 देखें- व्युपयो: III. iii. 39 उपयोगे -I. iv. 29 नियमपूर्वक विद्या ग्रहण करने में (जो पढ़ाने वाला,उस कारक की अपादान संज्ञा होती है)। उपयोगेषु -I. iii. 32 देखे - गन्थनावक्षेपणसेवन० I. ii. 32 उपरि... - V. iii. 31 देखें- उपर्युपरिष्टात् V. iii. 31 उपरि... -VIII. 1.7 देखें-उपर्यध्यधस: VIII. 1.7 उपरि -VIII. ii. 102 उपरि (स्विदासीत्) की (टि को भी प्लुत अनुदात्त होता उपरिस्थम् -VI. ii. 188 (अधि उपसर्ग से उत्तर) उपरिस्थवाची= ऊपर बैठने वाला,तद्वाची उत्तरपद को (अन्तोदात्त होता है)। उपर्यध्यधसः -VIII. 1.7 उपरि, अधि, अधस - इन शब्दों को (समीपता अर्थ कहना हो तो द्वित्व होता है)। उपर्युपरिष्टात् - V. 1. 31 उपरि और उपरिष्टात् शब्दों का निपातन किया जाता है,(अस्ताति के अर्थ में)। ....उपशुन.. - Viv.77 देखें-अचतुरov.iv.77 उपसंवाद.. -III. iv.8 देखें-उपसंवादाशंकयोः III. iv.8 उपसंवादाशंकयो: -III. iv.8 उपसंवाद तथा आशन गम्यमान हों तो (भी धातु से वेद विषय में लेट् प्रत्यय होता है)। उपसंवाद = पणबन्ध अर्थात् तू ऐसा करे तो मैं भी ऐसा करूं। ...उपसंव्यानयोः -1.1.35 देखें - बहियोंगोपसव्यानयोः I. 1. 35 ...उपसमाधानेषु -III. III. 41 देखें- निवासचिति III. . 41. ..उपसम्पती - VI. 1.56 देखें- अचिरोपसंपत्तौ VE: 1.56 ...उपसम्भापा.. - I. II. 47 . देखें - भासनोपसम्भाषा I. iii. 47 उपसर्ग... - VIII. iii. 87 देखें- उपसर्गप्रादुर्थ्याम् VIII. Iii. 87 उपसर्गपूर्वम् - VI. ii. 110 (बहुव्रीहि समास में) उपसर्ग पूर्व वाले (निष्ठान्त पूर्वपद) को (विकल्प से अन्तोदात्त होता है)। उपसर्गप्रादुर्ध्याम् - VIII. iii. 87 उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर तथा प्रादुस् शब्द से उत्तर (यकारपरक एवं अच्परक अस धातु के सकार को मूर्धन्य आदेश होता है)। ...उपरिष्टात् - V. iii. 31 . देखें-उपर्युपरिष्टात् V. 1. 31
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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