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________________ उपसमें 123 उपानहोः उपसगे-III. iii. 106 उपसर्ग उपपद रहते (आकारान्त धातुओं से भी स्त्रीलिंग, कर्तभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में अप्रत्यय होता है)। ...उपसर्गेभ्यः -VI. iii.96 देखें-द्ववन्तरुपसर्गेभ्य: VI. iii.96 उपसर्जनम् - I. ii. 43 (समास-विधायक सूत्रों में जो प्रथमा विभक्ति से निर्दिष्ट पद,उसकी) उपसर्जन संज्ञा होती है। उपसर्जनम् - II. ii. 30 उपसर्जन संज्ञक (का समास में पूर्व प्रयोग होता है)। उपसर्जनस्य -I.ii. 48. उपसर्जन (गो शब्दान्त प्रातिपदिक तथा उपसर्जन स्त्रीप्रत्ययान्त प्रातिपदिक) को (हस्व होता है)। उपसर्जनस्य-VI. iii. 81 जिस समास के सारे अवयव उपसर्जन हैं.तदवयव (सह शब्द) को (विकल्प से 'स'आदेश होता है)। उपसर्जनात् - IV.i. 54 (स्वाङ्गवाची जो) उपसर्जन (असंयोग उपधा वाले अदन्त प्रातिपदिक), उनसे (स्त्रीलिंग में विकल्प से ङीप प्रत्यय , होता है)। ...उपसर्जने -I. ii. 57 देखें-कालोपसर्जने I. 1.57 उपसर्या-III. 1. 104 उपसर्या शब्द उपपूर्वक सृधातु से यत्प्रत्ययान्त निपातन है,प्रजन अर्थात् प्रथम गर्भग्रहण का समय जिसका हो गया हो उस अर्थ में)। उपसिक्ते - IN. iv. 26 . (तृतीयासमर्थ व्यञ्जनवाची प्रातिपदिक से) ऊपर डाला हुआ' - इस अर्थ में (ठक् प्रत्यय होता है)। उपसृष्टयो: -I. iv. 38 उपसर्ग से युक्त (ध तथा द्रह धात) के (प्रयोग में जिसके प्रति कोप किया जाये.उस कारक की कर्म संज्ञा होती है)। ...उपस्थानीय.. -III. iv.68 देखें - भव्यगेय III. iv. 68 उपस्थिते-VI. I. 125 अनार्ष इति के परे रहते (प्लत अप्लत के समान हो जाता ....उपहतेषु - VI. ii. 51 देखें -आज्यातिगो० VI. iii. 51 उपाजे-I. iv.72 उपाजे (तथा अन्वाजे) शब्द (कब के योग में निपात और गति संज्ञक होते हैं)। उपात् -I. iii. 25 उप उपसर्ग से उत्तर (स्था धातु से आत्मनेपद होता है, मन्त्रकरण अर्थ में)। उपात् -I. iii. 56 उप उपसर्ग से उत्तर (पाणिग्रहण अर्थ में वर्तमान यम् धातु से आत्मनेपद होता है)। उपात् -I. iii. 84 उपपूर्वक (रम् धातु) से (भी परस्मैपद होता है)। उपात् -VI.i. 134 (प्रतियल,वैकृत तथा वाक्याध्याहार अर्थ गम्यमान हो तो कृ धातु के परे रहते) उप उपसर्ग से उत्तर (ककार से पूर्व सुट का आगम होता है,संहिता के विषय में)। प्रतियत्न = किसी गुण को किसी और गुण में बदलना। उपात् -VI.ii. 194 उप उपसर्ग से उत्तर (दो अच वाले शब्दों तथा अजिन शब्द को तत्पुरुष समास में अन्तोदात्त होता है, गौरादि शब्दों को छोड़कर)। उपात् - VII. 1.66 (प्रशंसा गम्यमान होने पर) उप उपसर्ग से उत्तर (लभ अङ्ग को यकारादि प्रत्यय के विषय में नुम् आगम होता उपादेः-v.iii. 80 उपशब्द आदि वाले (बह्वच मनुष्य-नामधेय)प्रातिपदिक से (नीति और अनुकम्पा गम्यमान होने पर अडच. तूच तथा घन, इलच और ठच् प्रत्यय विकल्प से होते है. प्राग्देशीय आचार्यों के मत में)। उपाधिभ्याम् - V.ii. 34 उप और अधि उपसर्ग प्रातिपदिकों से (यथासङ्ख्य करके यदि वह आसन्न' और 'आरूढ' अर्थों में वर्तमान हों तो सद्भाविषय में त्यकन् प्रत्यय होता है)। ...उपानहो:-V. 1. 14 देखें-ऋमभोपानहो: V.I. 14
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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