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________________ 111 उज्छादीनाम् उगिदचाम् - VII.1.70 उक् इत्सझक है जिनका, ऐसे (धातु वर्जित) अङ्गको तथा अञ्जु धातु को (सर्वनामस्थान परे रहते नुम् आगम होता है)। अम्पश्य.. - III. ii. 37 देखें-अम्पश्येरम्मद III. II. 37 उपम्पश्येरम्मदपाणिन्धमा - III. ii. 37 उग्रम्पश्य,इरम्मद तथा पाणिन्धम-ये शब्द (भी) खश प्रत्ययान्त निपातन किये जाते है। उच - VII. ii.64 'उच समवाये' धातु से (क प्रत्यय परे रहते ओक शब्द .... - II. II. 69 देखें-लोकाव्ययनिष्ठा II. 1.69 ....उक...-VI. 1. 160 देखें-कत्योकेष्णुच्छ VI. II. 160 ...उक: -VII. I. 11 देखें-शुक: VII. ii. 11 • उक -III. 1. 154 (लष,पत,पद,स्था,भवृष,हन,कम.गम-इन धातओं से तच्छीलादि कर्ता हो तो वर्तमान काल में) उका प्रत्यय होता है। उक -V.i. 101 (चतुर्थीसमर्थ कर्मन् प्रातिपदिक से 'शक्त है' अर्थ में) उकञ् प्रत्यय होता है। ...उक्च शस्... -III. Ii. 71 देखें-श्वेतवहोक्थशस् III. 1.71 ...उक्चादि.. -IV. 1.59 देखें-क्रतक्थादिO IV.ii. 59 ....उ. -IV. 1. 38 देखें - गोत्रोझोष्ट्रो० V.ii. 38 ....उक्षा... -v.ii.91 देखें - वत्सोक्षा० v. iii. 91 ...उखात् -IV.ii. 17 देखें-शूलोखात् IV.ii. 17 ...उखात् - IV. iii. 102 देखें - तित्तिरिवरतन्तु० IV. il. 102 उगवादिभ्यः -V.1.2 उवर्णान्त और गवादि गण में पठित प्रातिपदिकों से (क्रीत अर्थ से पहले कथित अर्थों में यत् प्रत्यय होता है)। उगित्... -VII. .70 देखें-उगिदचाम् VII. I. 70 उगितः-IV.i.6 उक्=उ,ऋ,लु इत् वाले प्रातिपदिक से (भी स्त्रीलिंग में डीप प्रत्यय होता है)। उगितः - VI. iii.44 उगित शब्द से परे (जो नदी.तदन्त शब्द को विकल्प करके हस्व होता है; घ, रूप,कल्प, चेलट्, ब्रुव, गोत्र, मत तथा हत शब्दों के परे रहते)। उच्चैः-I.11.29 ऊर्ध्व भाग से उच्चरित (अच् की उदात्त संज्ञा होती है)। उच्चस्तराम् -1.1.35 (यज्ञकर्म में वषट्कार अर्थात् वौषट् शब्द विकल्प से) उदात्ततर होता है, (पक्ष में एकश्रुति हो जाती है)। ...उच्छिष्य.. - III.i. 123 देखें-निष्टक्यदेवहूयो०.i. 123 उज्ज्वलिति - VII. ii. 34 उज्ज्वलिति शब्द (वेद विषय में) इडभाव युक्त निपातित है। उषः-I.1.17 उञ्=उ शब्द की (प्रगृह्यसज्जा होती है, अवैदिक इति के परे रहते)। उषः -VIII. 1. 33 , (मय प्रत्याहार से उत्तर) उञ् को (अच् परे रहते विकल्प करके वकारादेश होता है)। 3f VIII. iii. 21 (अवर्ण पूर्ववाले पदान्त य.व् का) उबू (पद) के परे रहते (भी लोप होता है)। ना उच्छति -IV. iv. 32 (द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिक से) चुनता है' अर्थ में (ठक प्रत्यय होता है)। उच्छादीनाम् -VI. 1. 157 उञ्छादि शब्दों को (भी अन्तोदात्त हो जाता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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