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________________ ईश्वरः 110 ईश्वरः -v.i.41 ईषत् - II. ii.7 (षष्ठीसमर्थ सर्वभूमि तथा पृथिवी प्रातिपदिकों से) अल्पार्थक 'ईषत्' शब्द (अकृदन्त सुबन्त के साथ समास 'स्वामी' अर्थ में (यथासङ्घय करके अण् तथा अञ् प्रत्यय को प्राप्त होता है, और वह तत्पुरुष समास होता है)। होते है)। ईषत्... - III. iii. 126 ईश्वरक्चनम् - II. iii.9 देखें - ईषदुःसुषु III. iii. 126 (जिससे अधिक हो और जिसका) ईश्वरवचन ईषदर्थे -VI. iii. 104 . = सामर्थ्य हो, (उसमें कर्मप्रवचनीय के योग में सप्तमी ईषत् = थोड़ा' के अर्थ में वर्तमान (कु शब्द को उत्तरपद . विभक्ति होती है)। परे रहते का आदेश हो जाता है)। ईश्वरे - I. iv. 96 ईषदसमाप्तौ-v.iii.67 ईश्वर= स्वस्वामिसम्बन्ध अर्थ में (अधि शब्द की कर्म- ___'किश्चित् न्यून' अर्थ में वर्तमान (प्रातिपदिक से कल्पप, प्रवचनीय और निपात संज्ञा होती है)। देश्य तथा देशीयर् प्रत्यय होते हैं। ईश्वरे - III. iv. 13 ईषःसुषु - III. ii. 126 ईश्वर शब्द के उपपद रहते (तमर्थ में धात से तोसन (कृच्छ्र अर्थ वाले तथा अकृच्छ अर्थ वाले) ईषद. दुस' ' कसुन् प्रत्यय होते हैं, वेद-विषय में)। तथा सु उपपद हों तो (धातु से खल् प्रत्यय होता है)। ईषत् - VI. ii. 54 . ई३ - VI.i. 128 ____प्लुत 'ई३' (अच् परे रहते चाक्रवर्मण आचार्य के मत पूर्वपद ईषत् शब्द को विकल्प से प्रकृतिस्वर होता है)। में अप्लुत के समान हो जाता है)। उ उ प्रत्याहारसूत्र -1 3-I.ii. 12 - आचार्य पाणिनि द्वारा अपने प्रथम प्रत्याहार सूत्र ऋवणान्त धातु स पर (भा झलााद वर्णान्त धातु से परे (भी झलादि लिङ् 3 में पठित तृतीय वर्ण,जो अपने सम्पूर्ण अठारह भेदों का आत्मनेपद विषय में कित्वत् होते है)। ग्राहक होता है। 3-III. 1.79 -पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्ण __(तनादि गण की धातुओं और डुकृञ् धातु से उत्तर माला का तीसरा वर्ण। कर्तृवाची सार्वधातुक परे रहने पर) उ प्रत्यय होता है। उ... -I.ii. 27 -III. ii..168 (सन्नन्त धातुओं से तथा आङ् पूर्वक शसि एवं भिक्ष देखें -अकाल: I. ii. 27 धातुओं से तच्छीलादि कर्ता हों तो वर्तमान काल में) उ ....... -II. iii. 69 प्रत्यय होता है। देखें - लोकाव्ययनिष्ठा० II. iii. 69 3 -III. iv.86 . उ.-v.i.3 (लोट् लकार के जो तिप् आदि आदेश,उनके इकार को) देखें-उगवादिभ्यः V.i.3 उकार आदेश होता है। उ-VIII. ii. 80 3 -VII. iv.7 (असकारान्त अदस् शब्द के दकार से उत्तर जो वर्ण, (चडूपरक णि परे रहते अङ्गकी उपधा) ऋवर्ण के स्थान उसके स्थान में) उवर्ण आदेश होता है, (तथा दकार को में विकल्प से ऋकारादेश होता है)। मकारादेश भी होता है)। 3-VII. iv.66 3-I.1.50 ऋवर्णान्त (अभ्यास) को (अकारादेश होता है)। ऋवर्ण के स्थान में (अण = अ.इ.उ में से कोई वर्ण यदि ...उक्... - VII. iii. 51 प्राप्त हो तो वह होते ही रपर हो जाता है)। देखें-इसुसुक्तान्तात् VII. iii. 51 .
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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