SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ई ई - III. 1. 111 (खन् धातु को अन्त्य अल् के स्थान में) ईकार आदेश (और क्यप् प्रत्यय भी होता है) । -VI. iv. 113 (श्नान्त अङ्ग एवं घुसञ्ज्ञक को छोड़कर अभ्यस्तसञ्ज्ञक के आकार के स्थान में) ईकारादेश होता है; (हलादि कित्. ङित् सार्वधातुक परे रहते) । ई. - VII. i. 77 (द्विवचन विभक्ति परे रहते अस्थि, दधि, सक्थि अङ्ग को) ईकारादेश होता है, (और वह उदात्त होता है, वेदविषय में) । - VII. iv. 31 (घ्रा तथा घ्मा अङ्ग को यङ् परे रहते ) ईकारादेश होता है। ई - VII. iv. 97 (गण धातु के अभ्यास को) ईकारादेश (तथा चकार से अकारादेश भी) होता है, (चङ्परक णि परे रहते)। ईकक् - IV. Iv. 59 (प्रथमासमर्थ प्रहरणसमानाधिकरणवाची शक्ति तथा यष्टि प्रातिपदिकों से षष्ठ्यर्थ में ) ईकक् प्रत्यय होता है। ईकक् - V. iii. 110 (कर्क तथा लोहित प्रातिपदिकों से स्वार्थ में) ईकक् प्रत्यय होता है । ईकन् - V. 1. 33 (अध्यर्द्धशब्द पूर्ववाले तथा द्विगुसञ्ज्ञक खारी शब्दान्त प्रातिपदिक से ‘तदर्हति' पर्यन्त कथित अर्थों में) ईकन् प्रत्यय होता है। ...ई.क्ष्योः - I. iv. 39 देखें- राधीक्ष्योः I. iv. 39 ई - VII. iii. 93 (ब्रूज् अङ्ग से उत्तर हलादि पित्- सार्वधातुक को ) ईट् का आगम होता है। ईटि - VIII. ii. 28 (इट् से उत्तर सकार का लोप होता है), ईट् परे रहते । ईड... -VI. i. 208 देखें - ईडवन्द० VI. 1. 208 ईड... -VII. ii. 78 देखें - ईडजनो: VII. ii. 78 108 ईडजनो: - VII. ii. 78 ईड तथा जन् धातु से उत्तर (ध्वे तथा से सार्वधातुक को ईट आगम होता है)। ईडवन्दवृशंसदुहाम् -VI. i. 208 ईड, वन्द, वृ, शंस, दुह् धातुओं का (जो ण्यत्, तदन्त शब्द को आद्युदात्त होता है)। ईत्... - I. 1. 11 देखें - ईदूदेत् I. 1. 11 ईत: ईत्... - I. 1. 18 देखें - ईदूतौ I. 1. 18 ईत् - VI. iii. 26 ( देवतावाची द्वन्द्व समास में सोम तथा वरुण शब्द उत्तरपद रहते अग्नि शब्द को) ईकारादेश होता है। ईत्. -VI. iii. 96 (द्वि, अन्तर् तथा उपसर्ग से उत्तर आप् शब्द को) कारादेश होता है । ईत् - VI. iv. 65 ( आकारान्त अङ्ग को ) ईकारादेश होता है, (यत् प्रत्यय परे रहते) । ईत् - VI. iv. 139 (उत् उपसर्ग से उत्तर भसंज्ञक अशु को ) ईकारादेश होता है। ईत् - VII. 1. 83 (आस् से उत्तर आन को) ईकारादेश होता है। ईत् – VII. iv. 4 (पा पाने' अङ्ग की उपधा का चङ्परक णि परे रहते लोप होता है, तथा अभ्यास को ) ईकारादेश होता है । ईत्- VII. iv. 55 (आप्, ज्ञपि तथा ऋघ् अङ्गों के अच् के स्थान में) ईकारादेश होता है, (सकारादि सन् प्रत्यय परे रहते) । ईत् – VIII. ii. 81 (अकारान्त अदस् शब्द के दकार से उत्तर एकार के स्थान में) ईकारादेश होता है, (एवं दकार को मकार भी होता है; बहुत पदार्थों को कहने में) । ईत: - VI. iii. 39 (स्वाङ्गवाची शब्द से उत्तर भी) जो ईकार, तदन्त (स्त्रीलिङ्गशब्द) को (पुंवद्भाव नहीं होता) ।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy