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________________ इषुगमियमाम् 107 इषुगमियमाम् - VII. iii. 77 इषु, गम्लु तथा यम् अङ्गों को शित् प्रत्यय परे रहते छकारादेश होता है)। ...इषुषु-VI. ii. 107 देखें - उदराश्वेषुषु VI. ii. 107 इष्टका... - VI. iii. 64 देखें - इष्टकेषीकाo VI. iii. 64 इष्टकासु-IV. iv. 165 (उपधान मन्त्र समानाधिकरण प्रथमासमर्थ मतुबन्त प्रातिपदिक से षष्ठयर्थ में यत् प्रत्यय होता है. यदि षष्ठयर्थ में निर्दिष्ट) ईंटें ही हों (तथा मतुप का लुक भी हो जाता है, वेद-विषय में)। इष्टकेषीकामालानाम् - VI. iii. 64 (चित, तूल तथा भारिन् शब्दों के उत्तरपद होने पर यथासंख्य करके) इष्टका. इषीका तथा माला शब्दों को (हस्व हो जाता है)। इष्टादिभ्यः - v. ii. 88 (प्रथमासमर्थ) इष्टादि प्रातिपदिकों से (भी 'इसके द्वारा' अर्थ में इनि प्रत्यय होता है)। इष्ट्वीनम् - VII.i. 48 (वेद विषय में) इष्टवीनम यह क्त्वाप्रत्ययान्त शब्द (भी) निपातन किया जाता है। इष्ठ.. -VI. iv. 154 देखें- इष्ठेमेयस्सु VI. iv. 154 ...इष्ठनौ -v. iii. 55 देखें - तमबिष्ठनौ v. iii. 55 इष्ठस्य-VI. iv. 159 (बहु शब्द से उत्तर) इष्ठन् को (यिट् आगम होता है तथा बहु शब्द को भू आदेश भी होता है)। इष्ठेमेयस्सु-VI. iv. 154 (तृ का लोप होता है); इष्ठन्, इमनिच तथा ईयसन परे रहते। इष्णुच् - III. ii. 136 (अलंपूर्वक कृज, निर् और आङ् पूर्वक कृज, प्रपूर्वक जन,उत्पूर्वक पच, उत्पूर्वक पत.उत्पूर्वक मद,रुचि,अपपूर्वक त्रप, वृतु, वृधु, सह, चर- इन धातुओं से वर्तमान काल में तच्छीलादि कर्ता हो तो) इष्णुच् प्रत्यय होता है। ...इष्णुच्... - VI. ii. 160 देखें-कृत्योकेष्णुच्० VI. ii. 160 ...इष्णुषु - VI. iv.55 देखें- आमन्ता० VI. iv. 55 ...इष्वास... -VI. ii. 38 देखें-वापराहण VI. ii. 38 इस्... - VI. iv.97 देखें- इस्मन्त्रन VI. iv.97 इस्... - VII. iii. 51 देखें-इसुसुक्तान्तात् VII. iii. 51 इस् - VII. iv. 54 (मी, मा तथा घुसज्ञक एवं रभु, डुलभष, शक्ल, पत्लु और पद अङ्गों के अच के स्थान में) इस आदेश होता है। (सकारादि सन् परे रहते)। इस्... - VIII. iii. 44 -इससो: VIII. iii.44 इसुसुक्तान्तात् - VII. ii. 51 इसन्त, उसन्त, उगन्त तथा तकारान्त अङ्ग से उत्तर (ठ के स्थान में क आदेश होता है)। इसुसो: - VIII. iii. 44 इस् तथा. उस् के (विसर्जनीय को विकल्प से षकारादेश होता है; सामर्थ्य होने पर; कवर्ग,पवर्ग परे रहते)। इस्मन्त्रन्क्विषु -VI. iv. 97 इस्, मन्, जन् तथा क्वि प्रत्ययों के परे रहते (भी छादि अङ्ग की उपधा को ह्रस्व होता है)। .ई.. - I. 1. 26 देखें- व्युपधात् I. I. 26 ई... -I. iv.3 देखें - यूI. iv.3
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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