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________________ इति इति - VII. 1. 64 बभूथ, आततन्य, जगृध्य, ववर्थ ये शब्द थल परे रहते निपातन किये जाते है, वेद विषय में । इति - VII. iv. 65 2 दाधर्ति, दर्धर्ति, दर्धर्षि बोभूतु तेतिक्ते, अलर्षि, आपनीफणत्, संसनिष्यदत्, करिक्रत्, कनिक्रदत्, भरिभ्रत् दविध्वतः, दविद्युतत् तरित्रतः, सरीसृपतम्, वरीवृजन् मर्मृज्य, आगनीगन्ति ये शब्द वेद-विषय में निपातन किये जाते है । - इति - VII. iv. 74 ससूव यह शब्द वेदविषय में निपातन किया जाता इति - VIII. 1. 43 अनुज्ञा के लिये की गई प्रार्थना-विषय में ननु शब्द से युक्त तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता। इति - VIII. 1. 60 'ह' से युक्त प्रथम तिङन्त विभक्ति को धर्मोल्ल गम्यमान होने पर अनुदात्त नहीं होता। 102 इति - VIII. 1. 61 'अहं' से युक्त प्रथम तिङन्त को विनियोग तथा चकार से धर्मोल्लन गम्यमान होने पर अनुदात नहीं होता। इति - VIII. 1. 62 च तथा अह शब्द का लोप होने पर प्रथम तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता, यदि 'एव' शब्द वाक्य में अवधारण अर्थ में प्रयुक्त किया गया हो तो। - इति VIII. i. 64 वै तथा बाव से युक्त प्रथम तिङन्त को भी विकल्प से वेद-विषय में अनुदात्त नहीं होता । इति • VIII. ii. 70 - अम्नस्, ऊधस्, अवस् - इन पदों को वेद-विषय में रु एवं रेफ दोनों ही देखे जाते हैं। इति - VIII. ii. 101 'चित्' यह निपात भी जब उपमा के अर्थ में प्रयुक्त हो तो वाक्य की टि को अनुदात्त प्लुत होता है। इति - - VIII. ii. 102 'उपरि स्विदासीत्' इसकी टि को भी प्लुत अनुदात्त होता है। इति - VIII. III. 43 कृत्वसुच् के अर्थ में वर्तमान द्विस्, त्रिस् तथा चतुर् के विसर्जनीय को षकारादेश विकल्प करके होता है; कवर्ग, पवर्ग परे रहते । .. इतिह... - V. iv. 23 देखें- अनन्तावसचेo Viv. 23 इतौ - I. 1. 16 (वैदिकेतर) इति शब्द के परे रहते (शाकल्य आचार्य के अनुसार 'सम्बुद्धि' संज्ञा के निमित्तभूत ओकार की प्रगृह्य संज्ञा होती है)। .. इतौ - V. lil. 4 देखें - एतेतौ VIII. 4 इतौ - VI. 1. 95 (अव्यक्त के अनुकरण का जो अत् शब्द, उससे उत्तर) इति शब्द परे रहते (पूर्व पर के स्थान में पररूप एकादेश होता है, संहिता के विषय में) । ...इत्यंसु - III. Iv. 27 देखें अन्यचैवं०] III. Iv. 27 इत्वम्भूतलक्षणे - -II. iii. 21 प्रकारविशिष्टत्व को प्राप्त का जो चिह्न, उसमें (तृतीया विभक्ति होती है। .... इत्यम्मूताख्यान... - I. Iv. 89 देखें - लक्षणत्वम्भूताख्यानभाग० 1. Iv. 89 इत्वम्भूतेन VIII. 149 - प्रकारविशिष्टत्व को प्राप्त हुये के द्वारा किया गया' अर्थ में जो समास, वहाँ भी क्तान्त उत्तरपद को कारक से परे अन्तोदात्त होता है)। ...इलु... - VI. iv. 55 देखें - 新 आमन्ताo VI. iv. 55 - इत्यादय: - VI. 1. 7 (जर यह धातु तथा) यह जक्ष् धातु आरम्भ में है जिन (छ:- जागृ, दरिद्रा, कास, शास्, देधीङ् तथा वेवीङ) धातुओं के, वे धातुयें (अभ्यस्तसंज्ञक होती है)। इत्यादौ - VI. 1. 115 (अङ्ग शब्द में जो एक उसको अकार के परे रहते प्रकृतिभाव हो जाता है तथा उस अङ्ग शब्द के आदि में (जो अकार, उसके परे रहते पूर्व एड् को प्रकृतिभाव होता है) । ..इत्र... - VI. ii. 144 - देखें थाथघञ् VI. ii. 144 इत्रः - III. ii. 184 (ऋ, लूञ, धू, षू, खनु, षह, चर इन धातुओं से करण कारक में ) इत्र प्रत्यय होता है, (वर्तमान काल में) । -
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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