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________________ इति इति - IV. 1. 20 प्रथमासमर्थ पौर्णमासी विशेषवाची प्रातिपदिक से अधिकरण अभिधेय होने पर यथाविहित अण् प्रत्यय होता है । इति - IV. 1.54 प्रथमासमर्थ छन्दोवाची प्रातिपदिकों से षष्ठयर्थ में यथाविहित अणु प्रत्यय होता है, प्रगायों के आदि के अभिधेय होने पर। इति - IV. 1. 56 प्रथमासमर्थ प्रहरण अर्थात् प्रहार का साधन समानाधिकरण वाले प्रातिपदिकों से सप्तम्यर्थ में ण प्रत्यय होता है. यदि 'अस्यां' से निर्दिष्ट क्रीडा हो । इति IV. ii. 66 अस्ति समानाधिकरण वाले प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से सप्तम्यर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है. यदि सप्तम्यर्थ से निर्दिष्ट उस नाम वाला देश हो अर्थात् प्रकृति-प्रत्ययसमुदाय से देश कहा जा रहा हो। 101 इति - IV. 1. 66 षष्ठीसमर्थ व्याख्यान किये जाने योग्य जो प्रातिपदिक, उनसे व्याख्यान अभिधेय होने पर तथा सप्तमीसमर्थ व्याख्यातव्यनामवाची शब्दों से भव अर्थ में भी यथाविहित प्रत्यय होते है । इति - IV. Iv. 125 उपधान मन्त्र समानाधिकरण प्रथमासमर्थ मतुबन्त प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में यत् प्रत्यय होता है, यदि षष्ठ्यर्थ में निर्दिष्ट ईटें ही हों, तथा मतुप् का लुक भी होता है, वेदविषय में। इति - V. 1.16 प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से षष्ठयर्थ में तथा प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से सप्तम्यर्थ में भी यथाविहित प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक स्यात् क्रिया के साथ समानाधिकरण वाला हो तो । इति - V. ii. 45 प्रथमासमर्थ दशन शब्द अन्तवाले प्रातिपदिक से सप्तम्यर्थ में ड प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ 'अधिक' समानाधिकरण वाला हो तो। IV.-ii. 57 - प्रथमासमर्थ क्रियावाची घञन्त प्रातिपदिक से सप्तम्यर्थ इति – V. 1. 94 में प्रत्यय होता है। इति इति - V. 1. 42 सप्तमीसमर्थ सर्वभूमि तथा पृथिवी प्रातिपदिकों से 'प्रसिद्ध' अर्थ में भी यथाविहित अण् और अञ् प्रत्यय होते हैं। इति .77 ग्रहण क्रिया के समानाधिकरण वाची पूरण प्रत्ययान्त प्रातिपदिक से स्वार्थ में कन् प्रत्यय होता है तथा पूरण प्रत्यय का विकल्प से लुक भी हो जाता है। इति - V. ii. 93 इन्द्रियम् शब्द का निपातन किया जाता है, 'जीवात्मा का चिन्ह', 'जीवात्मा के द्वारा देखा गया', 'जीवात्मा के द्वारा सृजन किया गया', 'जीवात्मा के द्वारा सेवित', 'ईश्वर के द्वारा दिया गया' - इन अर्थों में, विकल्प से। - 'है' क्रिया के समानाधिकरण वाले प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ तथा सप्तम्यर्थ में मतुप् प्रत्यय होता है। इति - Viv. 10 1 स्थान- शब्दान्त प्रातिपदिक से विकल्प से छ प्रत्यय होता है, यदि समानस्थान वाले व्यक्ति द्वारा स्थानशब्दान्तपद- प्रतिपाद्य तत्त्व अर्थवान् हो । इति - VI. ii. 149 इस प्रकार के व्यक्ति के द्वारा किया गया, इस अर्थ में जो समास, वहाँ भी क्तान्त उत्तरपद को कारक से परे अन्तोदात्त होता है। इति - VI. iii. 112 साढ्यै, साढ्वा तथा साढा- ये शब्द वेद में निपातन किये जाते है। इति - VII. 1. 43 वेद-विषय में 'यजध्वैनम्' शब्द भी निपातन किया जाता है 1 इति - VII. 1. 48 वेद - विषय में इष्ट्वीनम् यह शब्द भी निपातन किया जाता है। इति - VII. 1. 34 प्रसित स्कभित, स्तभित, उत्तभित, चत्त, विकस्त, विशस्तू. ', शंस्तृ शास्तृ, तरुतृ, तरूतृ, वरुतृ, वरूतृ, वरूत्रीः, उज्ज्वलिति, क्षरिति, क्षमिति वमिति, अमिति ये शब्द भी वेद विषय में निपातन है। - -
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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