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________________ निरक्त कोश अधि-आधिक्येन गम्यते' (इति उपाध्यायाः) । जिनके पास बहुत अधिक जाना जाता है, वे उपाध्याय हैं.। स्मयते' सूत्रतो जिनप्रवचनं येभ्यस्ते उपाध्यायाः । जिनके पास जिन-प्रवचन का स्मरण किया जाता है, वे उपाध्याय हैं। उपाधानमुपाधिः सन्निधिस्तेनोपाधिना उपाधौ वा आयो-लाभः श्रुतस्य येषामुपाधीनां वा विशेषणानां प्रक्रमाच्छोभनानामायोलामो येभ्यस्ते (उपाध्यायाः)।। जिनकी उपाधि/सन्निधि से श्रुत का आय/लाभ होता है वे उपाध्याय हैं। आधीनां मनः पीड़ानामायो लाभः-आध्यायः अधियां वा (नञः कुत्सार्थत्वात्) कुबुद्धीनामायोऽध्यायः, दुर्ध्यान' वाध्यायः, उपहतः आध्यायः वा यैस्ते उपाध्यायाः। (भटी प ४) जिन्होंने आधि, कुबुद्धि और दुर्ध्यान को उपहत/समाप्त कर दिया है, वे उपाध्याय हैं। ३२८. उवट्ठाण (उपस्थान) उपतिष्ठति तस्मिन्नति उपस्थानं । (सूचू १ पृ ४४) जिसमें रहकर उपासना की जाती है, वह उपस्थान संप्रदाय है। ३२६. उवट्ठावणा (उपस्थापना) उप-सामीप्येन सर्वदावस्थानलक्षणेन तिष्ठन्त्यस्यामिति उपस्थापना। (व्यभा ४/३ टी ६६) जिसमें सदा साथ रहा जाता है, वह उपस्थापना/वसति (स्थाटी प २८८) ३३०. उवणिहि (उपनिधि) उपनिधीयत इत्युपनिधिः। जो पास में रहती है, वह उपनिधि है। १. इण्-गतौ। २. इंक-स्मरणे। ३. ध्य-चितायाम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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