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________________ ४४ निरुक्त कोश जो अवश्य होता है और जिसका अवश्य कथन किया जाता है, वह आवश्यक है। आसमन्ताद् वश्या इन्द्रियकषायादिभावशत्रवो येषां ते तथा तैरेव क्रियते यद् तदावश्यकम् । (अनुद्वामटी प २८) जो जितेन्द्रिय व्यक्तियों के द्वारा करणीय है, वह आवश्यक है। २३७. आवात (आपात) आपतंत्यनेनेत्यापातः। (उचू पृ ५४) ___ जहां लोगों का निरन्तर आवागमन रहता है, वह आपात है। २३८. आवास (आवास) आसमन्ताद्वसन्ति तेष्वित्यावासाः। (उशाटी प २५२) __ जिसमें सदा-सदा के लिए रहा जाता है, वे आवास/गृह हैं । २३९. आवासय (आवासक) आ–मज्जायाए वासं करेइत्ति आवासं । ___जहां मर्यादापूर्वक वास किया जाता है, वह आवासक आवश्यक प्रतिक्रमण है। पसत्थगुणेहि अप्पाणं छादेतीति आवासं । जो प्रशस्त गुणों से आत्मा को आच्छादित करता है, वह आवासक/आवश्यक है। सुण्णमप्पाणं तं पसत्थभावेहि आवासेतीति आवासं । (अनुद्वाचू पृ १४) जो गुणशून्य आत्मा को प्रशस्त भावों से आवासित करता है, वह आवासक/आवश्यक है। समग्रस्यापि गुणग्रामस्यावासकमित्यावासकम् । (अनुद्वामटी प २८) जो समस्त गुणों का निवास स्थान है, वह आवासक/ आवश्यक सूत्र है। १. गुणशून्यमात्मानमावासयति गुणैरित्यावासकम् । . (आवहाटी १पृ ३४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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