SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निरुक्त कोश ३ अरह पूयाए' धातू पूयामरिहंति तेण अरिहंता । अरिहंति वंदण णमंसण च तम्हा उ हवंति अरिहंता ॥ (जीतभा ६८२) जो पूजा के योग्य हैं, वे अर्हत हैं। जो वन्दन-नमस्कार के योग्य हैं, वे अर्हत् हैं। १२५. अरुह (अरुह) न रोहन्ति भूयः समुत्पद्यन्ते इत्यरुहाः। (प्रसाटी प ४४७) जो बार-बार उत्पन्न नहीं होते, वे अरुह/सिद्ध हैं। १२६. अलंकार (अलङ्कार) अलंक्रियते-भूष्यतेऽनेनेत्यलङ्कारः। (स्थाटी प २७६) जो अलंकृत/विभूषित करता है, वह अलंकार/आभूषण । १२७. अल्लीण (आलीन) न चलति त्ति अल्लीणो। ___ (आवहाटी १ पृ १३१) जो चलता नहीं, वह आलीन/निश्चेष्ट है। १२८. अवगाहणा (अवगाहना) अवगाहन्ते –अवतिष्ठन्ते जीवा अस्यामित्यवगाहना । (अनुद्वामटी प १५१) जीव जितने स्थान का अवगाहन करता है, वह अवगाहना/ शरीर-परिमाण है। १२६. अवड्ड (अपार्ध) अपगतमर्द्ध यस्य सोऽपार्द्धः । (प्रज्ञाटी प ३८४) जो आधे भाग से अपगत/रहित है, वह अपार्द्ध है। १. (क) अर्ह-पूजायाम् । (ख) गुणेहि सदिसो नत्थि यस्मालोके सदेवके । तस्मा पासंसियत्तापि अरहं द्विपदुत्तमो॥ (विटी पृ ४२२) ___जो लोक में अपने असाधारण गुणों से अहं प्रशंसनीय है, वह अर्ह अर्हत् है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy